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________________ देवगढ़ के लेख : चतुरसीमेयल्लि प्राकु-मर्यादि नीरु वरिद बेळव इष्टु गद्दे होते स्थान-मान्य पूर्व मर्यादि बर् ... ओप्प श्री विरूपाक्ष (कन्नड़ अक्षरोंमें) [इस लेखका विषय शिलालेख नं० १४४ (ए० क०, जिल्द ४ थी, चामराजनगर तालुका ) से भिन्न नहीं है। अतः १४४ और १५६ नं. के लेखोका विषय एक ही है। इस लेखमें भी हरिराय ओडेयरने कनकगिरिके विजयनाथदेवकी पूजा, सनावट और रथयात्राके लिये हुणुसूरपुर ग्राम सहित मलेयूर ग्रामका दान किया । यह टान त्रियम्बक-देवके समक्ष किया गया था। मालेयूर गांव तेरकृणाम्बे राज्यके कोलगणका था।] [ EC, IV, Chamarajnagar tl., No., 144 & 159.] ६१६ भवणबेलगोला-संस्कृत। [वर्ष शुभकृत्स क १३४४ ( कोलहौ )-१४२२ ई.] [. शि० सं०, प्र० मा०] देवगढ़;-संस्कृत । [सं० १४१ तथा शक १३४६= १0ई.] [ ललितपुर से लाये गये एक शिलालेख को नकल ] अषभ चयत संश्रीभद्बर्द्धमानमहोटये विपुलं विलसत्कान्तौ कान्तारन्येऽमृतसागरे। सुगत सुमतिमन्नणाङ्काकलङ्क सकौमुद वितनुते सतां शान्यै शान्ति भियं समतिं मयं ।।श+ + + + र्भुवः श्रोते नश्वरानुदयाय ते। तस्चिदुद्यज्ज्वलज्ज्योतिराहतं श्रेयसे भये ||२|| पायादपायात् सदयः सदा नः सदा शिवो यद्विशदो हिताप्तौ चञ्चच्चिदा-१
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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