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________________ ४३० जैन-शिलालेख-संग्रह ५९३ हले-सोरव-संस्कृत तथा कबद । [शक सं० १३१७-१३१५ ई. ] [ळे-सोरबमें, उसके दक्षिण-पूर्वमें, तालाब के उत्तरीय नष्ट बन्ध के पासके समाधि-पाषाणपर] श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलान्छन । बीयात्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् || शक-वरुष १३१७ नेय भाव संवत्सरद भाद्रपद-ब ७ बु सोरब मालय-त्तम्म गाडडन मग तम्म-गऊड तनगे क्षय-व्याधियाद-निमित्त घट्ट केळगण नगिलेयकाप्याके होगि औषधिय माडिसिकोळतिरलागि रोग बिडदे सिद्धान्ति-देवरु पञ्च-नमस्कारद ध्यानदि जिन-चरण-से वेगैदिदनु । [जिनशासनको प्रशंसा । ( उक्त मितिको), सोरबके तम्म-गौडको क्षयरोग हो जानेसे घाटोंके नीचे नगिलेयकोप्पमें दवाई लेने के लिये गया। लेकिन कि बीमारी (रोग) उसे छोड़नेवाला नहीं था,-सिद्धान्ति-देवको आज्ञाके अनुसार, पञ्च-नमस्कारके उच्चारणपूर्वक, वह जिनके पाद-मूल में गया ।। [ Ec, VIII, Sorab tl., No 52 ] ५९४ हिस्भावली;-संस्कृत तथा कार। [वर्ष भाव=११५ ई. (ल, राइस)] [हिरे-मावलिमें, तीसरे पाषाणपर] श्रीमत्परम-गंभीरस्यावादामोघलान्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासन बिन-शासनम् ।।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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