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________________ ४२८ जैन-शिलालेख-संग्रह कडु-मोहद मात-पितर-बन्धु-बनङ्गळ । यडवरियद मडदियरम् । कडु-गलितनदल्लि तोरेदु सन्यसनिन्दम् ॥ रबनि-कुजवार-शुभ-दिन । भनियिसिदं दैव-गुरुव व्रतगळनेल्लम् । सुजनत्वद चन्द्रमनुम् । गजजिसदे मडिहि स्वर्गमं नेरे पडेदम् ।। अण्ण चन्द्रमगे गोपय । पुष्यद सम्बळ बनिते राम-गौण्ड-गौण्डिय पुत्रम् । बण्णिसुव हरिहरायन । पुण्णिदन कालदल्लि शुक्लोत्सरदोळ ॥ गंगळ महा । श्री श्री [ लेख स्पष्ट है । हरिहर-रायके समयका है । ] [ Ec, VIII, Sorab tl., No 116] ५६० मुल्लूर-संस्कृत तथा कन्नड़ । [शक ३५ १३१४ ई. [मुख्लूस्में, बरित-मन्दिरमें चन्द्रनाथ बस्तिके पास ] स्वस्ति श्री शक-वर्ष १३१३ नेय प्रमोदूत-संवत्सरद वैशाख-शुद्ध ५... · रदल्लु श्री-मूल-संघ देसी-गण पुस्तक-गच्छद .... कोण्डकुन्दान्वयरार्थशुभेन्दु-कन्द- विजयकोचिं-देवर प्रि ... ... ... ... ल्लि देवरु ई-स्थानमं पडेदुद्धरिसिदरु श्री-राजा ... ... ... ... कोजाळ्व सुगुणि-देविय देहारद विजय देवर द्वारा ... ... स्व-जननि ... ... आ-पोचब्बरसिंगे पुण्यार्थवागि प्रतिष्ठेय माड्सि ... ... बिट्ट अरु अणिलवाडिय नेलबिहळ्ळियम् ( यहाँ
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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