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________________ ४१६ जैन-शिलालेख-संग्रह हिरे-आवलि;-कना। [वर्ष उहारि = ११८९ ई. १ (लू. राइस)।] [हिरे भावडिमें, १२ पाषाणपर] स्वस्ति श्रीमतु रुधिरोद्गारि-संवत्सरद ज्येष्ठ शुध-पुण्णमि-सोमवारदन्दु श्री-मूल-संघद वीरसेन-देवर गुड मुद-गोड मगळ एकमतियवे पञ्चनमस्कार-समाधि-विधियिं स्वर्गस्येयादळु अचेयबे गौडि माडिसिद कलु ॥ बोपोहोज गेयिद कनु । [तेख पहिलेके ही लेखों के समान है, अतएव स्पष्ट है। सन् १९८३ ई. का है। किसी राजाका उल्लेख नहीं है ।] [ EC, VIII, Sorab tl.. No. 112 ] रावन्दूर-संसात और काद।। [शक १०=n .] [ रावन्दूर ( रावन्यूर प्रदेश) में, बस्तिके एक पाषाणपर] श्रीमत्-परमगंभीरस्यावादामोघलाम्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं बिन-शासनम् ।। स्वस्ति श्रीमद्-राय-राज-गुरु-मण्डलाचार्यरेनिसि श्री-मूलसंघदेशीय-गण पुस्तकगच्छु कोण्डकुन्दान्वय यिङ्गळेश्वरद बळि श्री मदमयचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्चिगळ वत्-शिय्यरु श्री-भ्रुतमुनिगळु तत्-शिष्यरु प्रभेन्तुगळु अवर प्रियागशिष्यरु श्री-श्रुतकीति-देवरु शक-वर्ष १३०६ नेय रुधिरोद्गारि-संवत्सरद द्वितीय-भाद्रपद-ब ८ आदित्यवारदलु मुक्तिवधू-वक्षभरादर तत्प्रतिनिधियनु सुमति
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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