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________________ उद्रिके लेख ४९१ पदमं ताळ्दिप्र्प-विप्राधरिवळ-बन-समेत लसत्पुष्पवाटीबिदितोद्यानादि-युक्तं प्रकट-कळम-जाळ-प्रपता ..... । तोप्पुदु सकळ-मुनि-प्रेम- धर्माभिरामम् ।। ....."एने मेरे उद्धरे..।। ..."नत-स्थळमागिरल्के तां सौन्दर्यदिम् । मनुज-मनोज बैचप्पन् । अनुपम-कीर्ति-प्रभावदिन्दोसे दिप्पम् ।। क्षितिनुत-शान्ति-जिन-क्रम-। शतपत्र-मधुव्रतं सुरञ्जन-मित्रम् । चतुरं बैचय-नायक-। न तनूनं रानिसिप्पनी- बैचप्पम् ॥ भू-देवाशीवादा। हा निव-शिर-करण्ड.........| .. दं वर्त्तिसे मेरेवम् । मेदिनि-मीसेयर गण्डनी-बैचप्पम् ॥ तदनन्तरम् ॥ विलसित-विजयानगरिय । नेलेवीडिनोळे वीर-बुक-राज-तनूजम् । बलि-निभ-हरिहर रायम् । सले राज्यं गेय्युतिईनति-मुददिन्दम् ॥ तत्पादपद्मोपजीवि॥ वृ॥ माधवराय अप्रतिम-तिय ना"'उ[दाग्र-साहसा- ! भोधिगळेन्दु रणद दन्तिगे.... मोरद-कालदोळ् । बोधन-रूपिनि "गोण्ड' "रणं.."बुद्धि-वि-। द्याधरर आक्षणं तो 'तोळेय... ... ... ||
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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