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________________ ३८४ जैन - शिलालेख संग्रह ५४७ हिरे आवलि; - कचद । [ वर्ष विकारी = १२६३ ई० १ ( लू• में बाषाण पर ] ...... [ हिरे-आबकिमें, ध्वस्त जिन बस्तिके सामनेके १२ स्वस्ति श्रीमन्महामण्डलेश्वरं तुळुव-राय राय - बेण्टेकार मलेयमण्डलिक-मदेभ-कुम्भ - विदळन - वेदण्डारि-सदृश श्रीमन्महामण्डलिक कोटि-नायकन राज्या म्युदमदन्दु विकारि-संवत्सरद् श्रावण मास शुक्लपचापच मो- शनिवारदष्तु भी-ख-संघ देशी-गण-कोण्डकुन्दान्वयद समस्त -गुण-शाल-सम्पन्नरप्प गुणनन्दि भट्टारकर गुड्डि खण्ड-स्फुटित - जीर्ण- जिनालयोद्धरण- परिणतान्तःकरणनु आहाराभय-मैषण्य-शास्त्र-दान- विनोदनुं सम्यक्त्व रत्नाकरनु बिन-गन्धोदक- पवित्रीकुवोतमांगनुमप्प श्रीमन् - नाळ - प्रभु अवलिय शिरियम- गौडन सम्बंग-लदिम शिरियम-गौडि सकळ - सन्यसन - पूर्वकं समाधियि मुडिपि स्वस्तेयादळ | मङ्गल महा १ श्री राइस ) । ] [ लेख स्पष्ट है । १२६६ ई०; कोटि-नायकका राज्य था । ] [ Eo VIII, Sorab tl., No 122. ] ૮ इलेबीड - संस्कृत और कन्नड़ । [ शक १२२१ = १३०० ई० ] [ बस्तिष्टि में दूसरे प्रतिमा-पाषाण पर ] ( सामने ) श्रीमत्परमगं मीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । श्रीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं विनशासनम् ॥
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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