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________________ इलेबी के लेख नेरेवात्मोद्ध-कलांशुवं दिवदोळं तोप्पेन्दले म्बन्ददिम् । तरिखन्दं सूर-मन्दिरक्कमयच्चन्द्रं रुन्द्र सैद्धान्तिकम् ॥ मुददभयचन्द्र- सिद्धान्- | ति - देवरम्माद निसिघियं दोरसमु- । द्रद नवरङ्गळ् निम्मिति | विदित यश:- पुण्य-बुद्धियं कैकोण्डर् ॥ मंगलमहा श्री श्री श्री ॥ ૩૦૨ ( बायीं ओर ) श्री- अभयचन्द्र- सिद्धान्ति- देवर् तम्म शिष्य- बाळ चन्द्र-देवरिगे व्याख्यानं माडिदपe ।। श्री श्री [ इस लेखमें बालचन्द्रके श्रुतगुरु अभयचन्द्र महासैद्धान्तिक के समाच मरणका उल्लेख है । जिन शासनकी प्रशंसाके बाद श्री संघ ( मूलसंघ ) को एक पर्वत मानकर उसके ऊपर देशिय - गणको एकवृक्षकी उपमा दी है। इस कल्पवृक्षकी जड़ कुन्दकुन्दान्वय है, इसकी शाखाएँ पुस्तक- गच्छ है, और इसकी उपशाखार्थे इङ्गलेश्वर बलि हैं । इसी प्रसिद्ध परम्परा में कुलभूषण - सैद्धान्तिक, उनके शिष्य एक जिन मन्दिर के संस्थापक निम्बदेव - सामन्त हुए । उस सामन्तके चारित्र - गुरु माननन्दि - सैद्धान्तिक चक्रवत्ति हुए । एक गन्धविमुक्त हुए, उनके शिष्य शुभनन्दि- सैद्धान्त, उनके शिष्य चारुकीर्त्ति पण्डित देव, उनके शिष्य समुदायद - माघनन्दि भट्टारक थे । माघनन्दिके दो शिष्य हुए, नेमिचन्द्र भट्टारक- देव और अभयचन्द्र सैद्धान्ती । तत्पश्चात् अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती की महिमाका वर्णन | ऊपरके ये दोनों बालचन्द्र-व्रती के क्रमसे दीक्षागुरु और श्रुतगुरू थे । बालचन्द्रके पुत्र अभवचन्द्र बालचन्द्रके शिष्य हुए। ( उक्त मितिकी) रातको अपने सल्लेखना के समयको जानकर, उसकी विधिको धारण करके अभयचन्द्र महासैद्धान्तिक दिवंगत हुए । ] 1 [ EC, V. Belur tl., No. 1183. ]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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