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________________ अमरपुरके लेख १६९ प्रसन्न-पाखदेवर प्रतिहस्तवागि मक-पर्यन्तं वृत्तिवन्तनेन्दु दक्षिण- पायदेशद दक्षिण-मधुरेस उत्तर-भागदल्लि पोन्नर "न्नति-सीमेय भुवनोकनाय-विषयद मुवलोकनायन वूर (पुर) बिन-ब्राह्मणरधि यजुर्वेददैत्रेयशाखे वशिष्ठ-गोत्र कौण्डिन्य-मैत्रा-वरुण-वैशिष्टमेम्न-अवरद दोपनायकङ्ग पोन्नब्वेगं पुट्टिद श्री-सयनगिरियु आ-चावेन्दु-मलपारि-देवर प्रिय-शिष्यनुमप्प चेपिले-हस्तल्लि आ-चन्द्राकै बरं तन्न मेळि-भागवनु धारा-पूर्वकं वृत्तियागि कोट । यिन्तप्पुदक्के साक्षि हदिनेण्टु-समय मल्लि-सेटि ओप्प श्री-वीतराग हदिनेण्टु-समयद ओप्प सदाशिव-देवरु (वही अन्तिम श्लोक) [जिन शासनको प्रशंसा। स्वस्ति । मार्तण्ड कुल-भूषण, ओरेयूर्-पुरवराधीश्वर, चोळ राजा थे,धिनमेंसे,—विस समय महा-मण्डलेश्वर, यिरुङ्गोण-देव-चोळ-महाराज अपने पृथ्वी-निडुगलके निवासस्थानमें ये: (उक्त मितिको,) तैलङ्गेरेमें बोगमटिगेके ब्रह्मचिनालयके लिये, (मूल संघ, देशिय-गण, कोण्डकुन्दान्वय, पुस्तक-गच्छ, और इनळेश्वर-बळिके त्रिभुवनकीर्ति-रावुळके प्रधान शिष्य) बालेन्दु मलधारिके प्रिय गृहस्थ-शिष्य, सङ्गायके (पुत्र बोम्मि सेटि तथा मेळन्वेसे उत्पन,-मल्लिखेटिने, तेलङ्गेरे बसदिके प्रसन पार्श्व-देवके लिये, तम्मडियहळ्ळि में सुपारीके २०.. पेड़ोंकेर हिस्से वैशानुवंश तक जानेके लिये अलग निकाल दिये तथा दीपनायक और पोनन्केसे उत्पन्न चेलपिल्लेको वे अपित कर दिये। ( यहाँ दीपनायकके शहर, खानदान आदिका परिचय दिया है।) चेलपिछे सयनगिरि और बालेन्दु-मलधारिका प्रिय शिष्य था । साक्षियों के हस्ताक्षर । ] शाप । [ EC, XII, Sira tl., No. 32.] - - -
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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