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________________ जैन-शिलालेख-संग्रह हलेबोड-काद। [-1103:२७४ ई० ( चोव्हॉर्न )], [ आदिनाथेश्वर बस्तिके पास-बस्तिहल्लिमें ] श्रीमन्नेमिचन्द्र-पण्डितदेवरु श्रीमद्वाळचन्द्र पण्डित-देवरु केळिहरु सारचतुष्टयादि-ग्रन्थगळ व्याख्यानम माडिदपरु* (बायीं ओर ) स्वस्ति श्री मूलसंघ-देशिय-गण-पुस्तम-गच्छ-कोण्डकुन्दान्वयदिनळेश्वरद बलिय मो-समुदायमाघनन्दि-मद्वारक-देवर प्रिय-शिष्यहं श्रीममिचन्द्र-मधारक-देवरु श्रीमदभयचन्द्रसिमान्त चक्रवर्तिगळंदीचा-गुरुगळं श्रुत-गुरुगळमागे तप [स् ] श्रुतजलिं बगदोळ् विख्यातं-बेट्ट भीमद्वाळचन्द्र-पण्डित-देवर सक-वर्षे ११६७ नेय मावसंवत्सरद भाद्रपद शुद्ध १२ बुधवार मध्याह-कालदो यमगे समाधियन्दु चातु-वणिंगळगरिपि नीवेसार धाम्भिकरप्पुदेन्दु नियामिसि क्षमितव्यमेन्दु सन्यसनपूर्वकं सकळ-निवृत्तियं माडि पल्यंकासनदोळि१ पञ्च-परमेष्ठिगळ स्वरूपम ध्यानिसुतं स्व-उमय-पर-समयंगळु मेच्चे उत्तम-समाधियं पडदक श्रीमद्रावधानीदोरसमुद्रद समस्त-भ-( दायीं ओर ) व्य-जन-माल कालोचितमप्प धर्मप्रभावनेयं माडि परोच-विनय-मागि गुरुगळ प्रविकृति-समन्वितं पञ्च-परमेष्टिगळ प्रतिमेयं माडिसि यथा-क्रमदिं लोकोत्तरमागे प्रतिष्ठेयं माडि पुण्य-दि-यशोइदियि माडिकोण्डक । भद्रमस्तु जयतु पिन शासनाप । श्री-जैनागम-वार्षि-वर्द्धन-विधुः कन्दर्प दोपहो । उपयुक्त पाषाण घिरे पर दो मूर्तियों पर पाक्षिा हुना।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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