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________________ २४२ जैन - शिलालेख - संग्रह ४६६ हीरे हल्लि - संस्कृत और कर भग्न । - seating [ शक ११०० = १२४८ ई० ] [ हमें मलेश्वर मन्दिर की दक्षिणी दोबालके एक पाषाण पर ] ' श्रीमत्परम गंभीरस्याद्वादामोघला लाञ्छनम् । यात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ नमोऽस्तु ॥ श्रीमत्-पोरसळ -वंशदति विनयादित्याख्यनादं यश:- / प्रेमं तन्नृप-पुत्रनादनेरेयङ्गोन्वीश्वरं तत्सुतम् । भूमिपालक - मौळि - लाळित पदं श्री विष्णु-भूपाळनुद्- । दाम-स्व-क्रम - विक्रमार्जित -नय-भ्राविष्णु विष्णूपमम् ॥ मलेयेलं वसमाग्तदोन्दे तळकाहुँ कोयटूर् को नं- | गति काली-पुरी गङ्गवाडि पेसर्वत्तुङ्गि बळ्ळारे बेळ- । वल-नाडा-राचनूर्मुडुगनूर्व्वल्लूरिवं कोण्ड तोळ् । वलदिं पोल्ववरारो पेळू भुज-बळ - भ्राजिष्णुर्वं विष्णुवम् ॥ आ - विष्णुवर्द्धनम् । भावोद्भव -राज्य-लक्ष्मियेनिसिद लक्ष्मा - । देविगमुद्भवसिदिनक- । नी- विभुत- नारसिंहनाहव-सिंहम् || आ - विभुवन पट्ट-महा- 1 देवि मही- देवि विदित-यादव - लक्ष्मी- 1 देवि जय-देवियेच- । देवि जगत्ख्याते सीतेगेने गुण-गणटिम् ॥
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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