SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माण्टनिडुगल्लुके लेख १३२ १ गिरनार:-संस्कृत । [विना काल निर्देशका] श्वेताम्बर सम्प्रदायका लेख । [Revised Lists., p. 357-358, No. 21 & 22, t. and tr.) ४७८ माण्टनिडुगनुः-संस्कृत + काद [शक ११५ = १२३२ ई.] [निडुगलु-बेष्ट ( निहुगल्लु परगना ) में, जैन बस्तिमें एक पाषाण पर ] स्वस्ति श्री जयाम्पुदय.." न शक-वर्ष १९५४ नेय नन्दन-संवत्सरद भाषाद-शुद्धाष्टमी-आदिवारदन्दु नेमि-पण्डितर मकळीबसदिय वृत्तियं धारापूर्वकं पडेदरु मङ्गळ महा श्री (५२) उसी पाषाण पर श्रीमत्परमगम्भीररस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ स्वस्ति समस्त-वसुमती-मारधौरेय-दोईण्डरुमधःकृतोद्दण्डरुं मार्तण्ड-कुळ-भूषणरुममभिसम्पात-भीषणरुमोरेयूर-प्पुरवराधीशरुमेनिप्प चोळावनीशरोळ् ।। मङ्गि-नुप-स्नु बम्बि-न। पं गोविन्दरननवनिमोळनना-1 तजुद्रविसिद मोग न। पं गौरव मेरु वर्म-नृपनं पडेदम् ॥
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy