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________________ गोमाके लेख २८७ पारिणिो नेगळ्द पोपण। ओरगे माडिदनुदानिधियीचरसन् ॥ (दायीं ओर ) एरेयन देववाददु तनय देखमदाऊदावनोळ् । नेरद गुणोनतिकेयदुतनय मिक-गुणोनतिके कण-। देरदडदाव धर्मवधिनाथनोळन्तदे तन्न धर्मवेन्द् । एसकदे मन्त्रियीचणन वलभ सोवल-देवि भाविपळ् ।। नगेनगे मोगवम्बुजभम् । मिगे मृग-बीक्षणमनीक्षणं मिगे मृगधरनम् । तेगळे मोख-कान्ति चेल्वम् । त्रि-गुणिसिदुदु निन रूपु सोवन-देवि ।। ईचणने बेळगवत्ति-नाइम ऐसा एक बिनालय बनवाया जैसा उस प्रदेशमें और कहीं नहीं था। और इस तरह बेलगवत्ति-नाड्को कोपणके समान बना दिया। मंत्री ईचणकी पत्नी सोवल-देवीकी प्रशंसा।] [ EC, VII, Shikarpur tl., No 317 ] ४५२ वकलगेरे-संकृत तयार [शक ११२०% १२.५० [ गेरे ( पगटे परगना) में, पाण-समाव मन्दिर बाहरी मांगनके एक पाषाण पर] नमः सिद्धेभ्यः ॥ भद्रमस्तु जिन-शासनाय । श्रीमत्-परमगंभीर स्थावादामोपलाञ्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं बिन-शासनम् ।। स्वस्ति श्री-पृथ्वी-बल्लभं महाराजाधिराच परमेश्वर परम भट्टारकं चालुक्यामरणं भीमद-भू-बछाम पेम्माविनयं कल्याणद नेले-वीडिनो ससाईसामियं दुष्ट-निग्रह-शिष्ट-प्रतिपालनं गेग्दु सुख-संकया-विनोददि राज्यं गेग्ये । स्वस्ति सम
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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