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________________ कलहोलोक लेख २७९ लाहोली;-कान [ R१२०४ ई.] लेख-परिचय . यह लेख कलहोलीके एक पुराने मन्दिर-जो कि अब एक लिङ्ग-मन्दिरके रूपमें, जैसा कि इस भागके सभी जैन मन्दिरोंका हुआ है, परिवर्तित है-के पाषाण-तलसे लिया हुआ है। कलहोली बेलगाँव जिलेके गोकाक तालुकामें है । इसका पुराना नाम कलपोडे है। हम देखते हैं कि रट्टोकी राजधानी इस समय वेणप्राम, आधुनिक बेलगाँव थी। सबसे पहले राजा सेनका वर्णन आया है, जो शि• ले० नं० १३० में द्वितीय क्रमपर वर्णित है। इन दोनोंके इस ऐक्यका कथन आगेके किसी भी अन्य आधुनिक शिलालेखमें नहीं दिया गया है, लेकिन कालोंकी तुलना इस निष्कर्ष पर पहुँचाती है । दूसरे, शि० ले. नं० १३० की ३८वीं पंक्तिका 'बृहद्दण्ड, 'विशेषण इस शिलालेखकी चतुर्थ पंक्तिमें सेनके लिये दिये गये प्रथम विशेषणसे मिलता-जुलता है । इसमें सेनके बादसे तीसरी पीढ़ी तकका उल्लेख है। और अन्तमें कुछ दान आते हैं, जो शक ११२७ ( ई० १२०५६ ) में, कार्तवीर्य चतुर्थकी आशसे सिन्दन कलपोडेमें बने हुए जैनमन्दिरकी ओरसे किये गये थे। यह गांव उन गांवोंमें से एक या बो कुरुम्बट्ट 'कम्पण' के नामसे विख्यात थे। यह कुरुम्बेट कुण्डी-तीन हचार बिलेमे शामिल था। लेखसे पता चलता है कि कार्तवीर्य चतुर्थको अपने शासनमें अपने छोटे भाई 'युवराज' मल्लिकार्वानसे सहायता मिलती थी। प्रसंगवश लेखमें एक यादव सरदारोंके कुटुम्बका भी उल्लेख आता है बो उस समय हगरटगे बिने पर शासन कर रहे थे। आजकल यह किस चिले 1. जिसके पास बदी मारी या शक्विशालिनी सेना हो।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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