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________________ जैन-शिलालेख संग्रह वंशावली (Genealogy) कार्तवीर्य चतुर्थ और मल्लिकार्जुन तककी दी हुई है। कार्तवीर्य चतुर्थका समकालीन एक राजा यादववंशी रेब' नामका था। इसके बाद लेख में कुछ दोनोंका उल्लेख आता है वो 'दुर्मति संवत्सर' शक १९२४ में किये गये थे। दान करने का दिन वैशाख शुदी पूर्णिमा, शुक्रवार 'व्यतीपात' का समय था। ये दान राजा कार्तवीर्यदेवने अपनी माता चन्द्रिकामहादेवीके द्वारा बनाये गये रटोंके जैन मन्दिरके लिये तत्कालीन गुरू शुभचन्द्र भट्टारक देयके लिये थे। सीमाओंके निर्धारण में बहुतसे गांवों और शहरोके नाम आये हैं। [JB. X, P. 183, No 9, 8.] रोहो-संस्कृत तथा गुजराती [सं० १२५१-१२०२ ई.] लेख भग्न है और श्वेताम्बर सम्प्रदायका मालूम पड़ता है। [EI, II, No. 5, No 12 ( P. 28-29 ) t, and tr.] ४४८ बन्दलिके:-संस्कृत तथा काद। . -[ शक ११२५=१२०३ ई.[बदलिकमें, शाग्वीश्वर नस्तिके सामनेके पाषाण पर ] ...: कवि-निवह-स्तुतं नेगळ्द रेष-चम्पतियिं बाळकमा। भुवनदोलिन्तनन्त-चिन-धर्मबद्धरिपर्द्ध-रेचनम् । सुविदितमागे बान्धव-पुराधिप शान्ति-बिनेश-तीर्थमम् । कपडेय बोप्पनुद्धरिसिदं यदु-बल्लम-राज्य-भूवणम् ॥ होली के शिलालेखमें भी रेउव' नाम आया है। पर यहाँका रेन्ब उस रेग्यसे मिव (जे. एक मीट)।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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