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________________ २६४ जैन-शिलालेख संग्रह एकान्तद-रामय्यको हान्गल बुलाया, और वहां उसके पैर धोये और मजवल्ली नामका गाँव मन्दिरको दानमें दिया। यह मशावली गांव पानुजल-पांच सौ में होसना-सत्तरमें मुण्डगोडके पास भोगेसरके दक्षिणमें है।] [ EI, V, No. 25, E.] ४३६ [विना का निर्देशका ] १. श्रीब्रह्मेश्वर-देवरखि एकान्तद-रामय्य बसदिय बिननोडुवागि तलेयनरिदु हडेद टावु ।। संक-गावुण्ड बसदिय नोडेयलीयधे (दे) आळू कुदुरेय्.." २. नोडिलु एकान्तद-रामय्य कादि गेल्दु जिनननोडेदु लि [ङ्गमं प्रतिष्ठे. माडिदम् ॥] अनुवाद :-ब्रह्मेश्वर भगवान् के पवित्र मन्दिरमें, बत्र कि एक मन्दिरके 'जिन' शत (दाव) पर रख दिये गये थे, एकान्तद-रामय्यने अपना सिर काट डाला और इसको फिरसे प्राप्त कर लिया ! जब सङ्कगावुण्डने उसे ( एकान्तदरामय्यको ) मन्दिर या वेदीको ध्वस्त नहीं करने दिया और अपने आदमियों तथा घुड़सवारोंको ( उस वेदीकी रक्षाके लिये)... ... ... ... एकान्तद-रामय्यने लड़ाई लड़ी और उसमें विजय प्राप्त की तथा 'जिन'को भग्न करके 'लिङ्ग' की प्रतिष्ठा की। [EI, V, No. 25, F.] कम्बेनहलि संस्कृत तथा काद। - [बिगा माड निर्देशक [*०शि०सं०, प्र.मा.]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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