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________________ चिक-मागरिक लेख २३१ नेयिन्दं जिन-मत्तियि चिन-मुनीन्द्राहार-दानङ्गळिम् । जिन-वाक्यार्थ-विचारदिन्दलेदु मिथ्या-मार्गमं तत्त्व-मावनेयिं पेटमरत्वदिन्देरगिदळ जकब्धे जैनावि योळ् ।। तत्वमना-जिनेन्द्र-मतदिं तिळिदुज्ज्वळमाद शुद्ध-हष्टित्व-गुणार्कनिन्दलरे शील-गुण-व्रत-वारिजाळि मि-1 थ्यात्व-तमस-तमं परेये सत्पथ-वर्तिनियागि शुद्ध-सं-1 वित्वदिनेरिददळ नेगळ्द बकले नारि सुरेन्द्र-लोकमम् ॥ ललित-पतिव्रताचरण-चार-नटी-सलिल-प्रवाहदिम् । कलि-मलमं कळल्चि निज-निर्मळ-कीर्ति-लता-वितानमम् । बळेयिसि-शील-शालि-बनम परिवर्द्धिसि पुण्य-नन्दनङ् । गळने निमिचि जक्कले वलं पडेदळ सुमनो-विभूतियन् ।। परिकिसि सद-बुधर् प्पोगळे तन्न चरित्र-गुणाङ्क-मालेयम् । विरचिसि सुप्रबन्धमने दिक्- कुळ-भित्तिगळोळ तेरळिच मुं-। बरेदुदनीगळा-दिबिज-लोकदळोप्पुव लेख-जाळदोळ् । बरेयिपनेन्दु जकले महा-सतियेरिदळल्ते सग्गमम् ।। पुगेयवसर्पण भरतदायेंयोळन्वितमाद भोग-भू-। मिगळ विरामदोळ् सुकृत-दुष्कृत-वर्तनेयागि सन्द का। ल-गत-च"तु " ळन्त्यदोळे पञ्चम-कालदोळेन्दिदन्द..। महात्मरोळ् गुणमे जक्कले-नारियोळुत्तरोत्तरम् ।। [प्रताप-चक्रवर्ति-यादव-नारायण होय्सल वीर-बल्लाल देवके २३३ वर्षमें उक्त मितिको जिसका बहुत विस्तृत वर्णन है, परन्तु जो बहुत घिस गया है । जकव्वे ( बकले ) ने समाधिमरण धारणकर स्वर्ग प्राप्त किया । (सम्पूर्ण लेख उसकी भक्ति और तपकी प्रशंसासे भरा हुआ है, कुछ भाग संस्कृत में है और कुछ कन्नड़में है )। उसकी माता लपव्वे, पिता मण्डनमुद,
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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