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________________ श्रवणबेल्गोलाके लेख ४०५ श्रवणबेलगोला-संस्कृत तथा कचर। [बिना काल निर्देशका [जै० शि० सं०, प्र. भा०] ४०६-४०७ श्रवणबेलगोला--कचड़-भग्म । [बिना काल निर्देशका] [जै० शि० सं०, प्र० भा. ] ४०० चिक्क-मागडि;-संस्कृत तथा कन्नड़ । [शक [ १०४ = ११८२ ई.] [चि गरिमें, बसवण्ण मन्दिरके प्राङ्गणमें एक स्तम्भ पर श्र मत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ श्रीराषिप्पुदु धर्मदिं नियत-धम्मै शान्तियिं शान्ति-वि-! स्तारं कुन्यु ... ... ........... ... ... । .... यकर विनुत-धर्म शान्ति सत्-कुन्थुवेम्ब- । ई-रत्नत्रय-देवरूजितमेनल दीर्घायुमं श्रीयुमम् ।। प्रकटं व्याप्त ... ... ... ... खरूपं नित्य-भावं विकर- । त्रिकमावेष्टित-मारुत-त्रितयवा-षड-द्रव्य-सम्पन-व-1 तकमोप्पि?दु नोडे नाडेयुवधो-मध्योर्ध्व-लोक ...। .." लोकक्केसेदिप्युदन्तुभय-कम्मोद्योग- निर्माण-सल्-।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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