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________________ સર जैन - शिलालेख संग्रह ३७७ तेबरतेप्प-संस्कृत तथा क 1101 f [ ठेवलेपमें वीरभद्र मन्दिरके सामनेके पाकाणंपर ] $ श्रीमत्परमगम्भीर स्याद्वादामोघलानम् । यात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिन - शासनम् ॥ सागर-वारि-वेष्टित समस्त घरा-रमणी - घन-स्तना- | भोग विदेम्बिनं विदित- विस्तृत - सारताराम हारदिम् । नागरखण्ड - पत्र-परिवेष्टन्दिम् जन-नेत्र-पुत्रिका । रागमनत्तु माणू दुदे मनस्-सुख-दं बनवासि मण्डळम् ॥ बळसिद नन्दनावळिगळ शुक-सङ्कुळदि पिकाळियिम् । बळेदेरगिई शाळि - वनदिं भ्रमराळियिनिक्षु वाटियिम् । तिळगोळदि लता - भवनदिं कमळाकरदिं कुमुद्वती- । कुळदिनिम् मनङ्गोळिपुदो सततं बनवासि मण्डळम् ॥ अदनाळ्नखिळ-रिपुनृप- । मद-मद्देननस्थिगमं पदेदीवम् । पद - नत-रक्षा-दक्षम् । विदित-यशं सोवि-देव-भूतळनाथ ॥ आ- कादम्ब - कुळ-तिळकन विक्रम- प्रक्रमवेन्तेन्दडे || अदम्य के बीरहिदनुछिदु कुम्बिक्के विद्विष्ट भूपर म्मद चिदिक्के शेषाक्षतमनो से वरोति के सर्व्वस्वमं व- । दिकं तदिक्के मारान्तवनिप-सतियर् कण्ण-नीरिक्के पूण्डिक्किदना - बङ्गाळव घात्रीपतिगे निगळवं सोवि-देव- क्षितीशं ॥ (क) | मदवदरातिथं तविसलग्गळ-गण्ण कडम्ब-रुद्रम्- |
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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