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________________ १२॥ जैन-शिलालेख-संग्रह बनवासे, बेळवल, पेोरे और हानुजल सभी पर अधिकार जमाकर शत्रु-राषाओंमें भय उत्पन्न कर दिया। बब, भुज-बल वीर-गङ्ग त्रिभुवन मल्ल होय्सल विष्णुवर्धन-देव राजधानी दोरसमुद्रमें बैठकर शान्ति और बुद्धिमत्तासे रान चला रहा था : तत्पादपद्मोपजीवी,-अजितसेन-भट्टारक, मल्लिषेण-मलधारी (कलियुगी गणधर), श्रीपाल-विद्य-देव और चन्द्रप्रभके पुत्र मुनिनाथ वासुपूज्य-सिद्धान्त-देव थे। द्रमिल-संघके अरङ्गलान्वयका एक गृहस्थ-शिष्य नारसिंघ होसळगावुण्ड था। ( उसकी प्रशंसा )। उसकी पत्नी केल्ले-गौण्डि थी। कदम्ब-सेटिकी प्रशंसा, जिसकी पत्नी चट्टियक्क थी। नन्नि-सेटिटकी प्रशंसा । लोक-गवुण्ड और माकवेगवुण्डीकी पुत्री चट्टवे-गवुण्डीके पुत्र होय्सल-गवुण्डने अपनी माताकी स्मृतिम, एक बसदि खड़ी की, और उस नगरके समस्त प्रजा तथा किसानोंके सामने, ( उक्त कुछ भूमि बराबर-बराबर बसदि और मन्दिरको बांट दी । यह सब अहोबल-पण्डितके पाद-प्रदालनपूर्वक किया। और ( उक्त मितिको ) बसदिको वह सब भूमि दे दी जो उसे नारसिंह होय्सल-देवसे मिली थी। __ यह दोनों पार्टियोंकी सम्मतिसे नेल्कुदरेके प्रधान, कलिदेव-माणिवोचने लिखा [ EC, VI, Kadur, Tl., No., 69.] ३५२ पण्डितरहल्लि-संस्कृत तथा कबह । [विना काल-निर्देशका, पर लगभग ११६० ई० का] [पण्डितरहल्लि ( करडगेरे परगना ) में, मन्दरगिरि-जस्तिके प्राङ्गणमें एक पाषाण पर श्रीमत्परमगंभीर-स्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं निनशासनम् ॥
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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