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________________ १२२ जैन-शिलालेख-संग्रह (अपर नाम होम पोन ) कदम्ब-कुलका प्रकाश, तथा गङ्ग-वंशमें उत्पन हुआ था। उस और अलिया-देवीसे जयकेशी-देव उत्पन्न हुये थे और उन्होंने सेतुमें चिन मन्दिर बनवाया था। तथा विज्जल देवीकी पुत्री अलिया-देवीने, (उक्त मितिको ), होन्नेयरसके साथ, इस मन्दिरके लिये ( उक्त ) भूमियोंका दान दिया। यह दान दो "सिवने" का था। यह दान उन्होंने मूलसंघ, काणर-गण तथा तिन्त्रिणि-गच्छके भानुकीर्ति-सिद्धान्त-देवके, जो बन्दनिके तीर्थके आचार्य थे, पाद-प्रक्षालनपूर्वक किया गया था। हमेशाका अन्तिम श्लोक ।] [EC. VIII, Sagar Tl., No. 150-] पालनपुर-संस्कृत तथा गुजराती । [सं० १२१७ = ११६० ई.] श्वेताम्बर सम्प्रदायका लेख। |EI, II, No. V, No. 10 ( P. 28), T. L, A.] ३५१ कबलो-संस्कृत तथा काड़ । झक १०८२-१६० ई. [काळी ( सकेपटण परगना ) में पुराने गांवकी जगह पर एक पाषाणपर] श्रीमत्परमगंभीरस्षाद्वादामोघलाञ्छनम् । बीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ स्वस्ति समधिगत-पञ्च-महा-शब्द-महामण्डलेश्वरम् द्वारावतोपुरवराधीश्वरम् । शशाकपुर-नि [वास वासन्तिका-देवी-लब्ध वर-प्रसादनम् । निवासि-दण्ड-खण्डित-प्रचण्ड-दायादनुम् । श्वेतातपत्र-शीतकिरण-विकसित-सफळ-जन-नयन-कुकळयन।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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