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________________ जैन-शिलालेख संग्रह इससे चौधौरे कामगाकुण्डके बनवाये हुए उसी गांवके मन्दिर की पार्श्वनाथ भगवानकी अष्टविध पूजन होती रहे, जो कुछ मन्दिरके मकानका बिगाड़ हो वह सुधरता रहे तथा वहां रहनेवाले मुनिबनोंके लिये उससे उनके उपहारका प्रबन्ध होता रहे । यह दान शिलालेख नं. ३२० में वर्णित श्री माधनन्दि सिदान्तदेव के ही एक और शिष्य श्री अर्हनन्दि सिद्धान्तदेवके पैरोंका प्रक्षालन करके किया गया था। इस शिलालेखमें, नं० ३२० के कोल्हापुर वाले शिलालेखमें न मिलनेवाली एक नई बात श्री माधनन्दिसिद्धांतदेव के विषयमें यह है कि उन्हें यहाँ कुल चन्द्रमुनिका शिष्य तथा 'कुन्दकुन्दके अन्वय का एक सूर्य बतलाया है। अन्तमें पंक्ति ४३-४४ में पुरानी कन्नड़में यह बताया है कि इस लेखको सुनार बन्योनके पुत्र तथा अभिनन्दनदेवके शिष्य गोळोजने खोदा था । [ EI, III, No. 28, T. R. A.] ३३५ कोन्नूर-संस्कृत। -[बिना काल-निर्देशका, पर १२ वीं शताब्दिका मध्य ( कोलहार्म)1]-- ५६. मिथ्याभाव-भवातिदर्प-पर-तदुश्शासनोच्छेदकम् प्राशाज्ञा-वशवर्तमा६०. न-जनता-सत्सौख्यसम्पादकम् [1] नानारूप-विशिष्ट-वस्तु-परम-स्याद्वाद-लक्ष्मी पदम् जेनीयाज्जिन-राजशासनमिदं स्वाचार-सार-प्रदम् ॥ [ ४४] ६१. सिद्धान्तामृत-वार्द्धि-तारकपतिस्तर्काम्बुबाहपतिः शब्दो-द्यानवनामृतैक-सरणि योगीन्द्र-चूडामणिः [11 विद्यापर-साथ६२. नाम-विभवः प्रोद्भूत-चेतोभवः' जीयादन्यमता-वनीभृदशनिः श्री-मेघचन्द्रो मुनिः॥[५] इदे हंसी-बूंद-मीम्टल्बगेदपुदु ६३. चकोरी-चयम् चञ्चुविन्दं कर्दुकल्साईपुदीशं जडेयो-ळिरिसलेन्दिपं सेज्जेगेर ल्पदेदप्पं कृष्णनेम्बन्तेसेदु बिस-लसत्-कन्दली-कं1. 'भयो' पढ़ो। -
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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