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________________ के मंदिर का भी उल्लेख है। पूजा के अनेक प्रकार होते थे ( ३३८)। धर्मप्राण महिला एवं पुरुषवर्ग सारे जीवन को धर्म की आराधना में व्यतीत कर अन्तिम क्षणों में समाधिमरण पूर्वक देहोत्सर्ग करता था । चौदहवीं शताब्दी के लगभग दक्षिण प्रांत में जैन महिलावर्ग के बीच सतीप्रथा का भी प्रवेश हो गया था ( ५५६,५७४,६०५ )। राजघराने की महिलाएं अपने पति के शासन में हाथ बटाती थीं। ___ जमीन प्रायः नापकर दान में दी जाती थी। लेखों में विविध प्रकार की नापों का उल्लेख है जैसे निवर्तन (लेख नं. १०१,१६०२ ) भेरुण्ड दण्ड (१८१ ) मत्तर ( २१०) कम्म (२४१) कुण्डिदेश दण्ड (३३४ ) हाथ (३२०) तथा स्तम्भ (३३४) श्रादि । चावल आदि की नाप के लिए मत्त (१८१) तथा तेल की नाप के लिए करघटिका ( २२८) का भी उल्लेख मिलता है। विविध प्रकार के आय करों के नाम भी लेखों से ज्ञात होते हैं। जैसे अन्नियाय वावदण्ड विरै (१६७, तामिल देश में । सिद्धाय कर ( ३१२ ) नमस्य (२१०) हालदारे (६७३ )। तत्कालीन अनेकों सिक्कों के नाम भी लेखों में मिलते है, जैसे गुप्त कालीन कार्षापण ( ६४ ) निष्क ( ४६४ ) सुवर्ण गधाण ( १६७ ) लोक्कि गद्याण ( २५३ ) गद्याण ( १६७,६७३ ) होन्नु ( ४११,६७३ ) विंशोपक (२२८)श्रादि। गाँव के अधिकारी के रूप में सेनवोव ( पटवारी, २१०,२२६,२५१ ) महामहत्त, (७१०) एवं हेगडे या पेगडे ( २०८) के नाम पाते हैं । पटवारी लोग अच्छे पढ़े लिखे होते थे । एक लेख ( २५१ ) में एक पटवारी को लेख रचने वाला लिखा है। यह एक छोटा सा चित्र है । विस्तृत के लिए भूमिका के विविध प्रकरणों को देखना चाहिये। लेख पद्धतिः -प्रत्येक पाषाण लेख या ताम्र लेख, यदि वह बहुत ही छोटा केवल नाम मात्र का या छोटा-सा दानपत्र नहीं हुआ तो, प्राय: देखा गया
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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