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________________ मुगुलू के लेख मनधारि-स्वामि ... देवरि बन्द द्रमिळ श्री... "कसेन - भट्टारकरिं वासुपूज्य - सिद्धान्त- देवरि तर्काविळ - बहु-भङ्गो-संगत- श्रीपाळ- त्रैविद्य-गद्य-पद्य वाचो विन्यास निसर्ग-विजयविलासम् ॥ सच्चरित्र - पवि • विद्या संशुद्ध-बुद्धये । ते नमः ॥ 'त्रैविद्य-देवरि श्री ·· वित्तयमो षट् ... विद्वज्जन- प्रपूज्याय वासुपूज्याय इन्तु गल्ते वेत्त तत्र गुरु-कुलद पेम्पं नेगळि गोविन्द सेट्टि माडिसिदनिन्तीजिनालयम् ॥ ... ......... 1919 ... मनु-चरितर समस्त - भुवन -सावनीय - जिनेन्द्र-धर्मं - त्रा- 1 रिनिधि सरोजिनी - प्रभव-राग-विवर्द्धन्य- राजहंसरण | णनुमनुजन्मनुं गुण-युग्गुणवजन - पारिजात रा- । मनिमडियागियुं भरतराज - चमूपनुमेम्बुदी-जगम् ॥ भारतदोळ कानीनु- । दारतेयोळ धर्म-नन्दनं सत्त्वदोळा- । चारदोळ सिन्धु-नन्दन | भरत -राज-दण्डाधीशम् ॥ ई- गोविन्द - जिनालय के प्रभव-संवत्सरदुत्तरायण संक्रान्ति व्यतीपातदन्दु रदलि... आगि श्री-नारसिंह-होयसळ देवं श्रीपाळ- त्रैविद्य-देवर शिष्यरप्प वासुपूज्य-सिद्धान्त - देवर कालं कच्चि धारापूर्व्वकं श्रीमदमहारं मुगुळि - यलि बिट्ट वृत्तिय सीमा-सम्बन्धि हिरियकेरेय केळगे गद्दे ( आगेकी चार पंक्तियों में दान का विशेष वर्णन है ) आ-बेद्द लेयोळगागि देवर सोडरिंगे गाणदलर -वाने ष्णेयूरोळगाव बण्डमारे वडहं गोण्डु विशद वण-सिद्दायवित्तुवति ऐदु-पणवं महाजनं कोडुवरिन्तिनितुवं मूर्वान्तर्ध्वम्र्महा जनंगळ, धारापूर्वकं माडि को हरू ( आगेकी चार पंक्तियों में कुछ परिचित वाक्यावयव तथा श्लोक है ) ई-धर्मवर्नादितेळे [ते] य नरकं पुगुर्व केरेय म ... डिमेयं ता- कहिसिद केरेर्याल कण्डुगगद्देयं देवरिगे बिट्टनु || अशेष-महाजनङ्गळ मत्तद- केरेपति कण्डुग गद्दे ये .. ... बिहरु | कळलु मू-कुळ भट्ट [ बिन-शासन की प्रशंसा । यह एल्कोटि-बिनालय है । राजा विष्णुकी प्रसंसा
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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