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________________ हिरे-श्रावलीके लेख रायणसंक्रांतिय पर्बनिमित्त दंडनायकगे बिनपंगेय्दु श्रीमदवलिय पार्शदेवगर्गे कारगुलियबयल साल माविनल्लि बिट्ट केयि ... दुण्डिय गलेयत्नु कम्म 5-1 स्वस्ति समस्तजिनपादाभोजवरप्रसादरुमप्प मुद्दगाकुंडनुं (others named) अक्कसालेखगरणियोल ... प्रतिष्ठेयं मडि समस्तप्रजेगलिई । स्वस्ति यमनियमखाध्यायध्यानधारणमौनानुष्ठान जपगुणसंपन्नरप्प । श्रीमूलसंघद सेनगणद पोगरि गच्छद वीरसेनपंडितदेवर सहधम्मिंगळप्प माणिक्यसेन पण्डितदेवर कालं कचि धारापूर्वकं माडि सर्वनमश्यमागि कोहरु । ई धम्मव प्रतिपालिसिदर अनन्तपुण्यमनेटदेवरु इदनळिदबरु अधोगति इळिवरु ।। (हमेशाका अन्तिम श्लोक) [काल सन् ११४२-४३ ई० । दुन्दुभि वर्ष, पुष्य शुद्ध सोमवारकी उत्तरायण संक्रान्ति । यह लेख पश्चिमी चालुक्य राबा बगदेकमल द्वितीय के राज्यका उल्लेख करता है और उसके बनवसे-१२००० के प्रदेशपर शासन करने वाले योगेश्वर दण्डनायक सेनाध्यक्षकी तारीफ़ करता है। पेगडे मय्दुन मल्लिदेव सेनाध्यक्षकी अनुमतिसे बिडवलिगे-७०के राज्य पर शासन कर रहा था और इसने आवलीके भगवान् पार्श्वनाथको एक भूमिका दान दिया था। एक और दान, संभवतः एक जैन मन्दिरको मुद्द गावण्ड तथा और दूसरे लोगोंके दारा किया गया था ( इसकी विगत लुप्त है)। ये लोग जैनधर्मके पक्के भक्त थे । यह दान वीरसेन पण्डित देवके सहधर्मी माणिक्यसेने पण्डितदेवके पाद-प्रक्षालन पूर्वक किया गया था। वीरसेन पण्डितदेव मूलसंघ, सेनगण और पोगरि गच्छके [EC, VIII, sorat tl. no 125 ] ३२३ श्रवणबेलगोला-संस्कृत तथा कबद। [शक १०६८%D१११५ई.] [देखो, जैन शिलालेख संग्रह, प्रथम भाग]
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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