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________________ बुद्रिके लेख और दूसरे का नाम तो नहीं दिया हुआ है, परन्तु इतना मालूम है कि वह सोमेश्वर तृतीयका उच्चाधिकारी या। शक वर्ष ६४२, उसी तरह शक वर्ष २०६२ सिद्धार्थी संवत्सर था, और तदनुसार वर्तमान लेखका काल सन्देहास्पद है, लेकिन सम्भवतः शक १०६२ (११४०-१ ई० ) यथार्थकाल है। [JB, X, P. 183-184, N... 10..] ३१५ मौंट शिवगङ्गा;--संस्कृत तथा कन्नद। [विना काल-निर्देशका [ लगभग १५० ई० (लू. राइस)।] [गङ्गाधरश्वर मन्दिरके मण्डपके खम्भे पर ] एतन्मित्र-कुळाम्भोज-भास्करस्य यशस स्थिरम् । विष्णोरडळ-वंश-श्री नायकस्यैव शासनम् ॥ ललितेन्दु-द्युतियं तेरल्मि भवनं माडिट्टो संकरा-1 चळम मेङ कडिदिट्टरो शिव-गृहं माडिहरा पुण्य-सङ । कुळम येळिमेनल्के कूत्तु शिवगों शादियोळ माडिदम् । कुळ-नाम गडिमेन्दु देव-गृहमं सामन्त-कम्जासनम् ॥ अदळ-कुळ-रन-भूषणन् । अदळ-कुलाम्भोज-भानुवदळेश्वरमेन्दु । उदुभव-चरितं माडिद- । नुदुघ-यशं विहि-देवनी-शिवगृहमम् ॥ पूवलि पूजे निवेद्यं । दाविंगे जळ गन्ध धूपवक्षते पात्रम् । पाकुळमेनिप्पुवनारैद् । आवगमवं कपके बर्प धनम कोट्टम् ॥ अन्तुमल्लदेयु निन-जनकन पेसरिं ब्रह्म श्वर-देवालयं वरं ब्रह्मसमुद्रमं नेगल्द .. मत्तम् । अदळ-जिनालयङ्गळबळेश्वर-देवगृहङ्गळित्तिवेन्द् । अदळसमुद्रमेन्देसेव विष्णुसमुद्रमिवेन्दु धर्मदिम् ।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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