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________________ अजमेरका लेख का भी उल्लेख किया है, जो अपने व्याख्यानाद्वारा समस्त सभाजनोंको सन्तुष्ट किया करते थे और भूषणका पिता 'आलोक' जिनका परमभक्त था । माथुरसंघी इन आचार्यका, अभी तक, कोई पता नहीं था। माथुरान्वयसे सम्बध रखने वाली काष्ठासंघकी उपलब्ध गुर्बावलीमें भी छत्रसेन गुरुका कोई उल्लेख नहीं है।। इस शिलालेखसे माथुरसंघके एक आचार्यका नया नाम मालूम हुआ है। अजमेर-प्राकृत [सं० ११६५ = ११३८ ई.] संवत् ११६५ आगणसुदि ३ प्राचार्य गदानन्दीकृते पण्डितगुणचन्द्रेण शान्तिनाम प्रतिमा कारिता। अर्थ स्पष्ट है। [ J. A.S.B., VII, p. 52, no.6] " ३०७ सिन्दिगेरे;-संस्कृत तथा कन्नड़ [शक १०६० = ११३८ ई.] [सिन्दिगेरे में, ब्रह्मेश्वर बसदिके दालानके स्तम्भ पर ] (पूर्वमुख) श्रीमत्परमगंभीरस्याद्वादामोघलाच्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ।। स्वस्ति समस्त-भुवनाश्रयं श्री-पृथ्वी-वल्लभं महाराजाधिराज परमेश्वरं परमभट्टारकं सत्याश्रयकुलतिलकं चालुक्याभरणं श्रीमत्-त्रिभुवनमल्ल-देवर विजय १. देखो जैनसिद्धान्त भास्कर, किरण ४, पृ० १०३
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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