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________________ जैन - शिलालेख संग्रह और गंगाकी ओर मुड़कर उत्तरदेशके राजाओंका सत्यानाश किया । उत्तर के आक्रमण में सफलता प्राप्त कर उसके हाथीने पाण्ड्य राजाकी सेनाको कुचल दिया था, भयङ्कर महान् युद्धोंमें चोल और गौलोंको हराया । कञ्चीगौण्ड - विक्रम-गंगने पाण्डयका पीछा करके नोलम्बवाडिको अधिकृत करके उच्चगिपर दखल कर लिया। इसके बाद तेलुङ्ग (तैलंग) देशकी तरफ़ बढ़ा, और इन्द्र... को सारी सम्पत्ति सहित कैद कर लिया। इसके बाद भसणको, जो सारे राष्ट्रका कण्टक था, समूल नष्ट किया और बनवसे बारह हज़ारको अपने कडित ( हिसाबकी किताब ) में लिख लिया । क्षणार्ध में राजाविष्णुने ( एरेगंगके पुत्रने ) प्रसिद्ध पानुङ्गल ले लिया, किसुकल्पर राज्य करने वाले.... नाथको अपनी नजरसे ही मार डाला । जयकेसीका पीछा करके पलसिगे १२००० का तथा.. . ५०० पर अधिकार जमा लिया । I इस महाक्षत्रिय विष्णुवर्द्धन देवके अनेक पद और उपाधियोंमें से कुछेक ये हैं :--- चोलकुलप्रलय-भैरव, चेरस्तम्बेरमराजकण्ठीरव, पाण्डय कुलपयोधि बडवानल, पल्लवयशोवल्लीपल्लवदावानल, नरसिंहवर्म्म-सिंह- सरभ, निश्चलप्रतापद्वीपपतित-कलपालादि - नृपाल - शलभ । कचीपर अधिकार करनेवाला ( कञ्चि-गोण्ड ), विक्रम-गंग वीर - विष्णुवर्द्धनदेव जिस समय इस तरह गंगवाडि ६६०००, नोणम्बवाड ३२००० तथा नवसे १२००० पर सुख व शान्तिसे राज्य कर रहा था : उसके पादमूल प्रभृत ( उत्पन्न ) तथा उसके कारुण्यरूपी अमृतप्रवाह परिवर्द्धित विष्णु दण्डाधिप था। ( उसकी प्रशंमा ) विष्णु दण्डाधिपका नाम इम्मडि दण्डनायक बिहियण्ण था । इस दण्डनायकने आधे महीने ( १५ दिन ) में ही दक्षिण विजय कर ली थी। विष्णुवर्द्धन- देवका यह दाहिना हाथ था । बहुत-सी उपाधियों और पदोंसे युक्त यह महाप्रधान, इम्मडि- दण्डनायक बिट्टियण 'सर्वाधिकारी' और सर्वजनोपकारी होता हुआ शान्तिसे ममय व्यतीत कर रहा था: इसके बाद पद्यमें विष्णु - दण्डाधिनाथके उन्हीं पराक्रमोंका वर्णन आता है जिनका वर्णन पहिले गद्यमें हो चुका है।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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