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________________ १६८ हास हुम्मच के शान्तर वंश के साथ जुड़ा हुआ है । जिनदत्तराय ने ६ वीं शताब्दी में शान्तर राज्य की नींव हुम्मच की राजधानी बनाकर डाली थी और उसी शताब्दी में वह उसे कलस नामक स्थान में ले गया था । ले० नं० ५२२ से विदित होता है कि सन् १२७७ में उक्त राजाओं की राजधानी कलस ही थी । कुछ लेखों से ज्ञात होता है कि चौदहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में शान्तर नरेश अपनी राजधानी कलस से कारकल ले आये थे । इसी शताब्दी में यहाँ के राजाओं पर लिंगायत मत का प्रभाव भी पड़ने लगा था । परन्तु १५ वीं १६ वीं शताब्दी के लेखों से मालुम होता है कि वे जैन धर्म के भी प्रतिपालक थे । सन् १४३२ के एक लेख ( ६२४ ) से मालुम होता है कि शक सं० १३५३ के फाल्गुन शुक्ल १२ बुधवार को भैरबेन्द्र के पुत्र वीर पाण्डेयशी या पाण्ड्यराय ने यहाँ बाहुबल की प्रतिमा बनाकर प्रतिष्ठित करायी थी । यह कार्य उन्होंने देशीगण की पनसोगे शाखा में ललितकीर्ति मुनीन्द्र के उपदेश से किया था । ले० नं० ६२७ में वीर पाण्ड्य की मनोकामना पूर्ण करने के लिए ब्रह्मदेव ( जिसकी मूर्ति वहीं थी ) से याचना की गई है । ले० नं० ६६४ से मालुम होता है कि सन् १५३० में कारकल की गद्दी पर वीर भैररस वोरेयड थे । उसकी बहिन कालल देवी ने कल बस्ति के पार्श्वनाथ के लिए अनेक प्रकार के दान दिये थे । ले० नं० ६८० से ज्ञात होता है कि सन् १५८६ में ललित कीर्ति मुनीन्द्र के उपदेश से भैरव द्वितीय ने चतुर्मुख बसदि बनवाया, जिसके दूसरे नाम त्रिभुवनतिलक जिनालय या सर्वतोभद्र भी थे । इस लेख में भैरव द्वितीय द्वारा अन्य अनेकों मूर्तियों की स्थापना का उल्लेख है । 1 वेणूर:: - कारकल तालुके में इस छोटे से गाँव में गोम्मटस्वामी की एक विशाल मूर्ति मिली है जिसकी स्थापना सन् १६०४ में तिम्मराज ने की थी, जो कि प्रसिद्ध चामुण्डराय के वंशज थे । इस मूर्ति की स्थापना श्रवणबेलगोल के भट्टारक चारुकीर्ति पण्डितदेव की सलाह से की गई थी ( ६८६, ६६० ) ।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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