SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जो भी हो पर 'अनेकपामशतसंख्यं मुदित जन धन कनक सस्य गोमहिषालावि कुल समाकीर्स जनपदं प्राप्तवान् " उल्लेख जिस स्थान के लिए किया गया है यह पुम्नाट देश के उत्तरी भाग के सिवाय और कोई दूसरी जगह नहीं है। पोदनपुर-तीर्थ के सम्बन्ध में हमें ले० नं० ३६५ (सन् १९८०) से विदित होता है कि भरत चक्रवर्ती ने पोदनपुर के समीप ५२५ धनुष प्रमाण बाहुबलि की मूर्ति प्रतिष्ठित करायी थी। कुछ काल बीतने पर मूर्ति के आसपास की भूमि कुक्कुट सों से व्याप्त और बीहड़ बन से आच्छादित होकर दुर्गम्य हो गयी थी । राचमल्ल नृप के मंत्री चामुण्ड राय को बाहुबलि के दर्शन की अभिलाषा हुई पर यात्रा के हेतु जब वे तैयार हुए तब उनके गुरु ने उनसे कहा कि वह स्थान बहुत दूर और अगम्य है । इस पर चामुण्ड राय ने वैसी मूर्ति की प्रतिष्ठा कराने का विचार किया और उन्होंने वैसा कर डाला । कहा जाता है कि यह पोदनपुर निजाम हैदराबाद प्रान्त के निजामाबाद जिले का 'बोधन' नामक गाँव है जो कि १० शताब्दी के पूर्वार्ध में राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र चतुर्थ की राजधानी था और वहां वैष्णवों का बोलबाला था तथा वहाँ एक. विशाल वैष्णव मन्दिर भी बनवाया गया था। यहाँ अब भी जैन एवं ब्राह्मण पुरातत्त्व की सामग्री मिलती है। पलासिकाः-हलसी या हलसिगे ( जिला बेलगांव) से प्राप्त ६ लेखों से शात होता है कि पांचवीं शताब्दी ईस्वी में कदम्बों के राज्यकाल में पलासिका एक प्रमुख जैन केन्द्र था। यहां यापनीय, निम्रन्थ एवं कूर्चक ये तीनों सम्प्रदाय समान भाव से आहत थे। ले० नं०६६ में लिखा है कि कदम्ब नरेश काकुस्थवर्मा ने अपने जैन सेनापति श्रुतकीर्ति को धार्मिक कार्य के लिए, एक क्षेत्र दान में दिया था। ले० नं० ६६ के अनुसार कदम्ब मृगेशवर्मा ने अपने पिता की स्मृति में १. जैन शि० ले० संग्रह, नं०८५ २. सालेतोरे, मेडीवल, जैनिज्म, पृष्ठ १८६.
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy