SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश रूप में मतारि खेरा नामक छोटी पहाड़ी है। यह स्थान एक समय दिग० सम्प्रदाय का केन्द्र था। उदयगिरिः-(साँची ) यहाँ की एक अकृत्रिम गुफा से एक लेख (६१) मिला है जो इस स्थान को जैन केन्द्र होने की सूचना देता है। देवगढ़ से प्राप्त ले० नं० १२८ से ज्ञात होता है कि गुर्जर प्रतिहार नरेश मिहिर भोज के समय इसका एक नाम लुअच्छगिरि था वहाँ शान्तिनाथ भगवान् का एक मन्दिर था । दो अन्य लेखों (६१७, ६१८) से जो कि १५ वीं शताब्दी के हैं, विदित होता है कि यहाँ मूलसंघान्तर्गत नन्दिसंघ मदसारद गच्छ, बलात्कार गण का अच्छा प्रभाव था । ११ वीं शताब्दी में दुबकुण्ड, काष्ठासंघ के लाटवागट गण का प्रमुख स्थान था । यह स्थान ग्वालियर से ७६ मील दक्षिण पश्चिम दिशा में है। इस क्षेत्र के आसपास कच्छवाहों ( कच्छप घाट वंश) का राज्य था । सन् १०८८ ई० में महाराजाधिराज विक्रमसिंह कच्छवाहा ने यहाँ के एक जैन मन्दिर को दान दिया था । उस मन्दिर की स्थापना एक जैन व्यापारी साधु लाहड़ ने की थी जो जायसवाल वंश का था । उसे विक्रमसिंह ने श्रेष्ठि की पदवी दी थी। यहाँ काष्ठासंघ लाटवागट गण के प्रमुख गुरु देवसेन की पादुकात्रों की स्थापना सन् १०६५ ई० में की गयी थी ( २२८, २३५)। ग्वालियर से प्राप्त दो लेखों (६३३, ६४०) से विदित होता है कि १५ वीं शताब्दी में तोमर वंशी राजाओं के काल में यह स्थान काञ्चीसंघ ( काष्ठासंघ का दूसरा नाम ) माथुरान्वय, पुष्करगण के भट्टारकों का प्रमुख केन्द्र था । इन लेखो में उक्त संघ के कतिपय भट्टारकों के नाम दिये गये हैं। वबागंज (मालवा ) से प्राप्त १२ वीं शताब्दी से १५ वीं तक के तीन लेखों से विदित होता है कि यह प्रमुख जैन केन्द्रों में एक या । सन् १९६६ में १-यहां से प्राप्त अनेकों लेख, अनेकान्त, वर्ष १० किरण ३-४ में प्रकाशित हुए में।
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy