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________________ दो पहाड़ियां जैन तीर्थों के इतिहास की दृष्टि से बड़े महत्व की है। यहाँ से भारतीय लेखों में महत्वपूर्ण एक लेख (२) हाथी गुम्फा से प्राप्त हुआ है जो जैन सम्राट् खारवेल के इतिहास पर प्रकाश डालता है। उक्त लेख में लिखा है कि यहाँ श्रादिनाथ भगवान् की एक प्रतिमा थी जिसे मगध का राजा नन्द उठा ले गया था। इसका अर्थ यह हुआ कि नन्दकाल से ही यह स्थान एक जैन केन्द्र था । इस संग्रह में दो और लेख (३ और २४५) इस स्थान के दिये गये हैं। अन्तिम लेख सूचित करता है कि ११वीं शताब्दी में भी यह जैन तीर्थ या । इसका प्राचीन नाम कुमारी पर्वत था । यहाँ से और भी अनेक लेख मिले हैं। जिनकी प्रतिलिपि स्व. वेणीमाधव वरुणा ने श्रोल्ड ब्राह्मी इन्क्रिप्सन्स् नामक ग्रन्थ में दी है। प्रभोसाः-इलाहाबाद के पास कौशाम्बी जैन और बौद्धों का एक प्राचीन तीर्थस्थान है। कौशाम्बी के पास ही प्रभास पर्वत नाम की एक पहाड़ी है जो प्राचीन काल से ही जैन तीर्थ रही है। इस स्थान के तीन लेख (६, ७ और ७५६ ) इस संग्रह में दिये गये हैं। प्रथम दो लेख वहां की प्राचीन दो गुफाओं से प्राप्त हुए हैं । इन लेखों की लिपि शुगकालीन है । उनसे मालुम होता है कि अहिच्छत्र के अषाढ़सेन ने जो कि वहसतिमित्र ( मगध नरेश ) का मामा था, काश्यपोय अर्हतों के उपयोग के लिए ये गुफाऐं बनवायीं । काश्यप, भग० महावीर का गोत्र था। संभव है ये गुफाएं भग० महावीर के अनुयायी भिन्तुओं के लिए बनवायी गई थीं। तीसरा लेख १६ वीं शताब्दी का है। ये तीनों लेख इस बात को सिद्ध करते हैं कि यह स्थान प्राचीन काल से अब तक बराबर जैनों का मान्य तीर्थ है। राजगृहः -- यह स्थान जैन, बौद्ध और हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ है । इस स्थान के तीन जैन लेख (८७,८३६ और ७४३) इस संग्रह में दिये गये हैं। ले० नं० ८७ पाँचवे पर्वत वैभार की तलहटी में एक गुफा से प्राप्त हुआ है जिसे सोन • भण्डार कहते हैं। यह लेख बड़े महत्त्व का है और इस प्रकार पढ़ा गया है: १. निर्वाण लामाय तपस्वियोम्ये शुभे गुहेऽहत्पतिमा प्रतिष्ठे
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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