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________________ rrr चैन धर्म पर अचल श्रद्धा रखने वाली एक विशिष्ट महिला श्राचल देवी का उल्लेख करना यहाँ श्रावश्यक है । वह शैव धर्म को मानने वाले सेनापति चन्द्रमौलि की पत्नी थी । वह अपने चार प्रकार के दान के लिए विख्यात थी । उसके इस कार्यों में उसके पति ने कभी बाधा नहीं दी बल्कि धार्मिक उदारता के कारण उसने सहायता ही की है । श्राचल देवी ने श्रवणवेल्गोल में एक जिनालय बनवाया और उसके पति ने अपने नरेश होय्सल बल्लाल से बम्मेयन इति नामक गांव दान में दिलाया ( ले० नं० ४०३, प्रथमभाग १२४ ) । ले० नं० ४०४ ( प्रथम भाग १०७ ) से ज्ञात होता है कि वीर बल्लाल ने उक्त महिला की प्रार्थना पर बेक्क नामक ग्राम भी गोम्मटेश्वर की पूजा के हेतु दिया था । मंत्री एचण की पत्नी सोमल देवी भी जैन महिलानों में उल्लेखनीय है । ले० नं० ४५१, ४५५ और ३५६ में उसकी प्रशंसा है। उसने बेलवते नाड् में एक जैन बसदि का निर्माण कराया और उसके पूजन के हेतु दान भी दिया था । यह नहीं समझना चाहिए कि राजघराने, सामन्तों एवं सेनापतियों की पत्नियों में ही जिन धर्म के प्रति विशेष अनुराग था बल्कि वैसा ही अनुराग नागरिकों की पत्नियों में भी देखने को मिलता है । ले० नं० ३५३ में लिखा है कि tfs aक्कय्य और उसकी पत्नी जक्कब्बे ने दीडगुरु में एक चैत्यालय बनवाया और पार्श्वनाथ भगवान् की स्थापना करके देवपूजा और ऋषियों के श्राहार के लिए भूमिदान दिया । ले० नं० ३८३ में जैनधर्म पर दृढ़ श्रद्धा रखनेवाली हर्य्यले महासती का उल्लेख है । उक्त लेख में लिखा है कि उक्त सती ने मृत्यु के समय अपने पुत्र भूवय नायक को बुलाकर कहा कि स्वप्न में भी मेरा ख्याल न करना, केवल धर्मं का विचार करना । यदि मुझे और तुम्हें पुण्योपार्जन करना है तो जिन मन्दिर बनवाओ आदि । इसके बाद जिनेन्द्र के चरणों में पंच नमस्कार मंत्र को जपते हुए उसने समाधि से देह त्याग दिया । ले० नं० ३८४ से मालुम होता है कि
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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