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________________ उस लेख में लिखा है कि रेचण को कलचुरि नरेशों से बहुत से देश मिले ये उनमें नागर खण्ड था । वहाँ मागुडि नामक स्थान में, शान्तिनाथ जिनालय के लिए उसने दानादि दिये थे। श्रवणवेल्गोल से प्राप्त एक लेख नं० ४२९ (प्रथम भाग ४७१ ) से शात होता है कि उसने सन् १२०० के लगभग शान्तिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा करायी और बसदि को कोल्हापुर के सागरनन्दि को सौंप दिया । लेख में उसे 'वसुधैकबान्धव' कहा गया है। १८. बूचिराजः-होय्सल बल्लाल द्वितीय का दूसरा सेनापति बृचिरान था। ले. नं० ३७६ में उसे मन्त्रीश्वर एवं सांधिविग्रहिक कहा गया है। उसमें चतुर्विध पाण्डित्य था तथा वह संस्कृत और कमड दोनों भाषाओं में कविता कर सकता था। इसके अतिरिक उसकी धर्मिष्ठता की अनेक विध प्रशंसा की गई है। उसने सन् १९७३ में राजा बल्लाल के पट्टबन्धोत्सव के समय सीगेनाड के मारिकलि स्थान में त्रिकूट जिनालय बनवाया और मन्दिर की पूजा, जीणोद्धार एवं प्राहार दान श्रादि के लिए अपने गुरु वासुपूज्य सिद्धान्त देव को मारिकलि ग्राम भेंट में दिया। ११. चन्द्रमौलिः-उक्त बल्लाल नरेश के राज्य में जैनधर्म के प्रति उदारता दिखलाने वाला एक शैव मंत्री चंद्रमौलि था। ले० नं. ४०६ (प्रथम भाग ४६४ ) में वह भारत शास्त्र, श्रागम, तर्कव्याकरण, उपनिषद, नाटक, काव्य श्रादि में विद्वन्मान्य था तथा बल्लालनप के दाहिने हाथ का दण्डस्वरूप था । यद्यपि वह स्वयं कट्टर शैव था पर उसकी पत्नी श्राचलदेवी परम जैन धर्माबलम्बिनी थी। उस देवी ने अक्णवेल्गोल तीर्थपर बड़ी भक्ति के साथ पार्श्वनाथ का मन्दिर निर्माण कराया और मंत्री चंद्रमौलि ने राजा बल्लाल से स्वयं प्रार्थना कर उक्त जिनालय की पूजादि के लिए बम्मेयनहल्लि नामक गाँव दान में दिलाया। २०. नागदेवः-बल्लाल द्वितीय के मंत्रियों में एक जैन मंत्री नम्गदेव भी था । वह बोम्मदेव सचिव का पुत्र था। ले० नं. ४२८ (प्रथम भाग १३.) में लिखा है कि वह बैन मन्दिरों का प्रतिपालक था तथा राजा ने उसे पटन
SR No.010112
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchandra Chaudhary
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1957
Total Pages579
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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