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________________ बिलियूरका लेख १५५ न्तुनूम्बित्तनेय वर्ष ‘प्रवर्तिसुत्तिरे स्वस्ति सत्यवाक्यकोङ्गुणिवर्मधर्म-महाराजाधिराज कुवलाल-पुरवरेश्वर नन्दगिरि-नाथ श्रीमत्पेर्मानडिय राज्याभिषेकं गेल्द पडि नेण्टनेय वर्पदन्दु पा (फा) ल्गुणमासद श्री-पञ्चमे यन्दु शिवणन्दि-सिद्धान्तद-भटारर शिष्यर् स्सर्व (4) णन्दि-देवगै पेण्णे-गडङ्गद सत्यवाक्य-जिनालय के पेड्डोरेगरेय विळियूर्-प्पन्निपटियुभ सर्व-पाद-परिहार पेर्मनडि कोट्टो नोम् भट्टर-मासिवरं अय्-सामन्तरं बेड्डोरेगरेय एल्पदिम्बरं एन्नोकटु इदक्कं साक्षी मले-मासिचरु अय्मुरुमं (अयनूबरूं) अय्-दामरिगरुं इदक्के कापु इदनलिटों बारणासियुमं सासिद्धार्चरुमं सासिरं कविले युमननिळदोम् पञ्चमहापातकनक्कु सेदोजन लिवित्त (त) बेळियूर ऐम्बटुगद्याण पोन्नू एण्टु-नूरु-बट्टमुं तेरुवोम् । [ यह दान शकवर्ष ८०९ के चालू रहते हुए फाल्गुन महीनेके पाँचवें दिन, जिस वर्ष पेर्मनडिके राज्याभिषेकका १८ वां वर्ष चालू, था, उन्होंने शिवनन्दि सिद्धान्त- भट्टारके शिष्य सर्वनन्दि-दवको पेड्रोरेंगरेके अन्तर्गत बिलियूरके १२ छोटे गाँव, हमेशाके लिये लगान वगैरः से मुक्त करके, दिये। यह दान पेन-कडङ्गक सत्यवाक्य जिनचैत्यालयके लिये दिया गया था । ऐसा दीखता है कि 'सत्यवाक्य कोङ्गुणिवर्म-धर्म-महाराजाधिराज' पेमनडिकी ही उपाधि या विरुद है । ये दोनों एक ही व्यक्ति हैं, अलग-अलग नहीं। ये कुवलाल-पुरके प्रभु तथा नन्दगिरिक नाथ थे। ___आगे लेखमें साक्षियों तथा संरक्षकोंका परिचय है । इस दानको भङ्ग करनेवालेको अमुक-अमुक पापका भागी बताया है। यह लेख सेदोजका लिखा हुआ है। बिलियूर की आमदनी ८० गधाण सोना और ८०० (नाप) सन्दुल (चावल) की है। FEC, I, coory. ins., n° "]
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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