SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ जैन-शिलालेख संग्रह हाल भी बताता है । हम देखते हैं कि रद्दोंमें प्रथम जिसने कि प्रमुख अधिकारी होने का पद पाया था मेरडका पुत्र पृथ्वीराम था। उसको यह प्रमुख अधिपति होनेका पद राष्ट्रकूट राजा कृष्णकी अधीनतामें मिला था। इससे पहिले वह पूज्य ऋषि मैलापतीर्थके कारेय गणमें सिर्फ एक धार्मिक विद्यार्थी था । इस शिलालेखमें कृष्णराजदेवकी उपाधियाँ चालुक्य राजाओंके समान ही हैं तथा चक्रवर्तीकी उपाधियाँ हैं, और हम यह भी देखते हैं कि शक ७९८ में', जो मन्मथ संवत्सर था सुगन्धवर्तिमें उसने एक जिनमन्दिर बनवाया, और इसके लिये १८ 'निवर्तन' भूमि दी । किन्तु यह लेख किसी उत्तरवर्ती समयमें खोदा गया होगा, क्योंकि प्रथम चार पंक्तियोंमें राजा कनके जो कि पृथ्वीरामके :- या पीढ़ी आगे हुआ है, एक दानका उल्लेख आता है । यह दान सुगन्धवर्तिक मुलगुन्दके 'सीवट' में किया गया था। लेखका वंशावलीका भाग लेख नं. २३७ की रिवंशोद्भवः ख्यातो' पंक्तिसे शुरू होता है। प्रथम नाम ननका आया है । उसका पुत्र कार्तवीर्य था जो चालुक्य राजा आहवमल्ल या सोमेश्वरदेव प्रथमक अधीन था। सोमेश्वरदेव प्रथमका काल मर डब्ल्यू. इलियट (Sir W. Eliot) ने शक ९६२ (ई. १०४०-१) से लेकर शक ९९१ (ई, १.६९-७०) दिया है और इमी लेखसे यह पता चलता है कि कार्तवीर्यने ही कुण्डी (जो कि उत्तरवर्ती लेखोंका 'कुण्डी तीन हजार' है ) की सीमायें निर्धारित की थीं। इसके बाद तीन पीढ़ी बीतनेपर चौथी पीढ़ीमें कार्तवीर्य द्वितीयका नाम आता है । यह चालुक्य राजा त्रिभुवनमलंदव, पेर्माडिदेव या विक्रमादित्य द्वितीय था !] [JB, S. p. 391-98, insu° ", 1st pert] बिलियर-कन्नड़ । [शक ८०९-८८७ ई.] भद्रमस्तु जिनशासनाय (1) शक-नृपातीता (त) काल-संवत्सगळे१ मूल लेखमें, "शक कालके ७९.७ वर्ष व्यतीत होने पर" है।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy