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________________ हल्सीके लेख दूसरा पत्र; दूसरी ओर पञ्चदशनिवर्त्तना तांब्रशासने भूमिर्निबद्धा उञ्छकर भरादिविवर्जिता श्रीमद्भानुवर्मराजलब्धपादप्रसादेन पण्डरभोजकेन परमाद्भक्तेन प्रवर्द्धमानराज्यश्रीरविवर्म्मधर्म्ममहाराजस्य एकादशे संवत्सरे हेमन्तषष्ठपक्षे तीसरा पत्र | दशम्यां तिथौ || तां यो हिनस्ति स्ववंश्यः परवंश्यो वा स पञ्चमहापानकसंयुक्तो भवति ॥ उक्तञ्च ॥ बहुभिर्व्वसुधा दत्ता राजभिः सगरादिभिः यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलं ॥ स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरेत वसुंधरा षष्टिवर्षसहस्राणि कुम्भीपाके स पच्यते [ इस लेखमें भानुवर्मा और उसके अधीनस्थ कर्मचारी पण्डर 'भोजक' के दानका उल्लेख है । यह दान भानुवर्माके बड़े भाई रविवर्माके राज्यके ११ वें वर्ष में, हेमन्तऋतुके छठे पक्षमें दसवीं तिथिको दिया गया था । इस भूमिका दान जिन भगवानकी हर पूर्णिमाके दिन पूजन करनेके लिये ही हुआ था । भूमिका नाप १५ निवर्तन था । यह भूमि पलाशिका गाँव के कपटी की थी। इस लेखसे कदम्बवंशके राजाओंकी रविवर्माके समयतकativratar भी पता चलता है और वह यह है : १. काकुत्स्थवर्मा २. शान्तिवर्मा 1 ३. श्रीमृगेश ४. रविवर्मा (छोटा भाई भानुवर्मा ) । [ इं० ए०, जिल्द ६, पृ० २७- २९]
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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