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________________ मथुराके लेख ३.... वस्य दिनरस्य शिशिनि अय्य जिनदसि पणति-धरितय शिशिनि अ........ ४. धकरवपणतिहरमसोपवसिनि बुबुस्य धित रज्यवसुस्यधर्म...' ५. [द] विलस्य मतु विष्णु[भ] वस्य पिदमहिक विजयशिरिये दन वध........ ६............................. अनुवाद-५० वां वर्ष, शीतऋतुका दूसरा महीना, पहला दिन, इस दिन, वरण (वारण) गण, अय्यभिस्त (?) कुल, सं[कासिया] शाखा, शिरिग्रह (श्रीगृह) संभोगके महावाचक तथा गणि समदिव दिनर की शिष्या अय्य-जिनदसि (आर्य जिनदासी)की आज्ञाको माननेवाली... अय्य धकरब (?) की आज्ञाको धारण करनेवाली विजयशिरि विजयश्रीने] दानमें वध [मान] अर्थात् वर्धमान की प्रतिमा...... । यह विजयश्री बुबुकी पुत्री, रज्यवसु (राज्यवसु) की धर्मपत्री, देविलकी माँ (और) विष्णुभवकी नानी थी और इसने एक महीनेका उपवास किया था। [El. II, n° XIV, n°36] रामनगर-प्राकृत। [ काल ? वर्ष ५०] । राजा स्थान न कहाँ विशेषता बार (अहिच्छत्र) 1891-1892, p. 3/ रामनगर JAS N-W-P-0, दूसरा महीना, शीतऋत, NAnnual report पहला दिन ब्राझी लिपि [JRAS, 1903, p. 7-14, ' 40] १ 'धर्मपत्नी' पढ़ो। २ 'वधमान प्रतिमा' या शायद 'प्रतिमा' ।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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