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________________ १०८ जैन-शिलालेखसंग्रह परिचय इस लेखमें रायणग्य नायक, मारथ्य नायक, तथा कोण्डनूरुके दूसरे नायकोंके द्वारा किये गये दान का उल्लेख है । ये दान महातीर्थ तटेश्वरदेवके मन्दिरकी तरफसे किये गये थे। उस समय कुण्डी ३००० में महासामन्त राजा कार्तवीर्य राज्य कर रहे थे। इनकी उपाधियोंमें रह-वंश बतलाया गया है। पूर्ववर्ती रट्ट शिलालेखोंकी अपेक्षा इनकी उपाधियाँ कलहोळी शिलालेखकी उपाधियोंसे ज्यादा मिलती हैं । इस लेखकी ४३ वीं पंक्तिमें उनका नाम 'कत्समदेव' दिया हुभा है, और ये संभवतः कार्तवीर्य तृतीय हैं, जैसा कि भागेकी वंशावलीसे प्रकट होगा। कालकी पंकि घिस गई है। . [JB, X. p. 181-182, p. p. 287-292, t.; p. 293-298, tr.; ins. n° 8, II part.] कल्लूरगुह-संस्कृत तथा कार्ड [शक १०४३%११२१ ई.] [कल्लूरगुड्ड (शिमोगा परगना)में, सिद्धेश्वर मन्दिरकी पूर्वदिशामें पड़े हुए पाषाणपर] १ इस शिलालेखका लेख वही है जो शिलालेख नं. २२७ का अन्तिम भाग है। केवल अंश मेद है। २२७ नं. का अंश पहिला है और इस लेखका अंश दूसरा है । पर यह अंश-भेद सूक्ष्मरीतिसे अवलोकन करने पर भी, सिवाय तिथि (काल)-मेदके, ठीक-ठीक नहीं मालूम पड़ता । अतः लेख (जो २२७ वें शिलालेखका द्वितीयांश है) यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पाठक अपनी बुद्धिसे ही उसे निश्चित करें, क्योंकि हमको उक्त ( २२७) लेखमें 'रायणय्य नायक' तथा 'मारय्य नायक' ये दो नाम (जिनके दानका उल्लेख इस लेखमें है) कतई नहीं मिले हैं । 'कोण्डनूर' का नाम अवश्य पाया जाता है, पर उसके अन्य 'नायकों का कुछ भी पता नहीं। अतः हमें सन्देह है कि २२७ वें नं० के शिलालेखसे भिन्न कोई दूसरा लेख इस २७६ वें नं० का होना चाहिये । संभव है वह गल्तीसे लिखे जानेसे रह गया हो, या मूल 'JBA' पत्रिकामें ही छूट गया हो । सम्पादक.
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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