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________________ जैन शिलालेख संग्रह २५० होन्नूर-कन्नड़ [लगभग शक १०३०=११०८ ई० (फ्लीट)।] [कोल्हापुरके पास कागलसे दक्षिण-पश्चिमकी ओर दो मील दूरपर होनूरमें जैनमन्दिरके भीतर एक प्रतिमाके अभिवक-स्थल (पाण्डुक शिला) के सामने यह प्राचीन काड़का लेख है । प्रतिमा खड्गासनस्थ सिरपर सर्पके सप्तफगाधारी छत्रसे मण्डित पार्श्वनाथस्वामीकी है । इसके दोनों कोनोंमें एक-एक झुकता हुभा या बैठा हुमा भाकार (मूर्ति) है । लेख १४ इञ्च ऊँची तथा २ फुट ७ इञ्च चौड़ी जगहको घेरे हुए है। यह कोल्हापुरके शिलाहारोंमेंसे बल्लाळ और गण्डरादित्यके समयका है, अर्थात् लगभग शक १०३० (११०४-९ ई.) के समीपवर्ती है।] लेख खस्ति श्रीमूलसंघद पो(पु)नागवृक्षमूलगणद रात्रिमतिकन्तियर गुई बम्मगावुण्डं माडिसिद बसदिगे श्रीमन्महामण्डलेश्वरं बल्लाळदेवर्नु गण्डरादित्यदेवन्म(नुम्) आहारदानक्के बिट्ट कम्मविन्नूरकं अगायि मने................................................ [स्वस्ति । श्रीमन्महामण्डलेश्वर बल्लालदेव और गण्डरादित्यदेवने श्रीमूल संघके (भेद) पुनागवृक्षमूलगणके रात्रिमतिकन्तिके गुड्ड (शिष्य या अनुयायी) बम्मगावुण्डके द्वारा निर्मापित बसदिके लिये, (तपस्वियोंको) आहारदान के लाभार्थ २०० 'कम्म' एवं छः हाथ या ३ गजका एक भवन दानमें दिया।] [IA, XII, p. 102, n° 6, t. & tr.] निर्माण करता था उसको कुछ भूमि भेटमें दी जाती थी; इसके सिवाय उस तालाबसे फायदा उठानेवालोंसे तालाबके निर्माण करनेवालेको उत्पन्न (फसल) का १० वाँ हिस्सा या और कोई छोटा हिस्सा मिलता था। इसीका नाम 'दशवन' था।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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