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________________ हुम्मचका लेख २७७ मूकियर-काधण्णको ७ मत्तर; कन्तियर-नाकस्यको ४ मत्सर और ६०० 'कम्म' (पं. ३९); और 'सर्वनमस्य'-दानके रूपमें श्रीमद्भुवनैकमल्ल शान्तिनाथदेवको २० मत्तर (पं. ४०) दिये । भुवनैकमल शान्तिनाथदेव नामका मन्दिर 'भुवनैकमल्ल' विरुदवाले पश्चिमी चालुक्य राजा सोमेश्वर द्वितीयने बनवाया था या उसमें शान्तिनाथकी प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई थी। [ ई० ए०, १८, पृ० ३५-४०, नं० १७३ ] मथुरा-संस्कृत सं० ११३४-१०७७६० [ पद्मासनस्थ तीर्थकरकी विशाल मूर्तिका लेख ] [इस मूर्तिका लेख साफ-साफपढ़ने में नहीं आता। कुछ भाग पढ़ा जाता है, कुछ नहीं । परन्तु लेख सिर्फ दो पंक्तियोंका है । इस मूर्तिका लेख सिर्फ कालकी दृष्टि से ध्यान देने योग्य है। डा० फूहरर् (Dr, Ftihrer ) के मतसे यह लेख बताता है कि इस मूर्तिका निर्माण मथुराके श्वेताम्बर सम्प्रदायकी तरफसे हुआ था। शेष लेख नं. १६१ के अनुसार जानना ।] [ Antiquities of Mathura, (ASI, XX), p. 53, t.} हुम्मच-कन्नड़ [विना काल-निर्देशका; पर लगभग १०७७ ई० का] [ हुम्मचमें, सूळे बस्तिके सामनेके मानस्तम्भपर ] ( पश्चिम मुख ) श्री-वीरसान्तरन पिरिय-मगं तैलह-देवं भुजबळशान्तरनेन्दु पट्टमं कट्टिसि कोण्डु पट्टण खामि माडिसिद तीर्थदबसदिगे बीजकन बयलं बिट्टन् (वे ही शापात्मक वाक्यावयव ) खस्ति समधिगत-पञ्च-महा-कल्याणाष्ट-महाप्रातिहार्य-चतुस्त्रिंशदतिशय 1 "Progress Report" for 1890-91, p. 16.
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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