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________________ २७६ जैन - शिलालेख संग्रह सुनीन्द्र ( पं. ९ ), या सिरिणन्दि ( पं. १७) नामके गुरु थे जो सर्व पदार्थों के व्याख्यान करनेमें चतुर थे, जिनकी पदवी 'परवादिशरभ - भेरुण्ड' ( पं. ६) थी । जब ये आचार्य, श्रीनन्दिपण्डित, तपश्चर्या में संलग्न थे, उनके शिष्य 'अष्टोपवासिगन्ति' ( पं. १० ), या अष्टोपवास- कन्ति (पं. २९ ) थे, जो जिनधर्मके उद्धार करनेमें बहुत प्रसन थे । और इनको श्रीनन्दि पण्डितसे सात 'मसर' भूमिका 'नमस्य' दान मिला था और इस दानका उपयोग ध्वजतटाक ( पं० १२ ) ( गाँवके) १२ ' गवुण्डु' सरदारोंकी छत्रछायाके नीचे, पार्श्वजिनेश्वरकी पूजा तथा शास्त्र लिखनेवालोंके भोजनके प्रबंधके लिये किया। इसके बाद लेखमें एक 'सेनबोव' या पटवारी सिङ्गण ( पं. १३ ), सिङ्ग ( पं. १४ ), या सिङ्गय्य ( पं. २२ ) का उल्लेख आता है जो जिनधर्मभक्त था । यह सिङ्ग श्रीनन्दिका पटवारी था । इसके बाद कथन है कि अनल संवत्सर, जो व्यतीत शक सं. ९९८ था, की श्राही या भाश्रहीमें श्रीनन्दिपण्डितको गुडिगेरीकी भूमि में पश्चिम दिशाके खेतोंका अधिकार मिल गया था । ये खेत, एक ताम्रपत्र के अनुसार, उस आनेसेज्जेय बसदिके जैनमन्दिरके अधिकारमें थे, जिसको श्रीमत् चालुक्यचक्रवर्ती विजयादित्यवल्लभकी छोटी बहिन कुङ्कुममहादेवीने पहले पुरिगेरी में बनवाया था । श्रीनन्दि पण्डितने इन खेतोंमेंसे अपने शिष्य सिङ्गय्य ( पं. २२ ) को, 'सर्वनमस्य' दानके तौर पर, १५ मत्तर भूमि दी । सिङ्गय्यने यह भूमि गुडिगेरीके मुनियोंके आहारके प्रबन्धके लिये दे दी, और इस बातका ध्यान रखते हुए कि इसकी उत्पन्न इसी कार्यमें खर्च होती है, किसी दूसरे धर्म या कार्यमें खर्च नहीं होती, यह काम राजा, पण्डितों, १२ 'गावुण्ड' लोग, और शेष सभी धार्मिक लोगों को ( पं. २५ ) सौंप दिया। जबतक चन्द्र, सूर्य और समुद्र तथा पृथ्वी हैं तबतक यह दान जारी रहे, यह बात भी निगाह में रखनेके लिये इन लोगोंको कहा । इसके पश्चात् इस भूमिकी सीमायें दी हुई हैं । उन्हीं पश्चिम दिशाके खेतोंमेंसे श्रीनन्दि पण्डितने, लगान-मुक्त जमीनके रूपमें, १२ गाण्डों को १११ मत्तर (पं. ३६ ); 'पेर्गडे' प्रभाकरथ्यके पुत्र रुय्यको १५ मन्तर सेनबोब हन्वण्णको १५ मन्तर ( पं. ३८ );
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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