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________________ बन्दालिकेका लेख २६३ मुल्लूर-संस्कृत तथा काड़ [काल लप्स पर लगभग १०७० ई.] [मुल्लूर (निडुत परगना )में, पार्श्वनाम बस्तिके पश्चिममें तीसरे पाषाणपर] .................. यानिधि सत्या..............."ल-देवि ॥ भूतल ............विनिर्गत..........."लोक्यविख्याते............यण मोक्षदे ..........."वर्ण............द्यामुलं........पनिद..."मालि........... नुर्वीपाळ-भूत 'बरसिद कारुणियोदव"......."न वचन काय वद्दिग ......"तुन्छिन":....यम्बन्तिरे स.........."त दिविजलोक ॥ खं .........."पृथुविकोङ्गाळवनरसि.... [यह समस्त लेख बहुत बिगड़ा हुआ है। किसी मरे हुएका स्मारक है । और पृथुविकोङ्गाळवकी रानी..........] [ EC, IX, Coorg tl., n° 36] बन्दलिके-संस्कृत तथा कन्नड़-भग्न [शक ९९६=१०७४ ई.] [ बन्दलिकेमें, उसी बस्तिके उत्तरकी ओरके एक दूसरे पाषाणपर] भद्रं समन्तभद्रस्य पूज्यपादस्य सन्मतेः । अकलंक-गुरोर्भूयात् शासनाय जिनेशिनः ॥ श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाच्छनम् । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ खस्ति श्री-प्रमदा-प्रमोद-जनकं यस्योरु-वक्ष-स्थलम् यद्दोईण्ड-कृतान्त-वक्त्र-विवरे मनं द्विषट्-पार्थिवैः ।
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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