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________________ २६२ जैन-शिलालेख संग्रह भासं सूनृतवाग्विळासनवनीनाथोत्तमं कत्तमं ॥आ विभुविन वधु पबलदेवी कळारूपविभवजिनमतदोब्वाग्देवी रतिदेवी लक्ष्मीदेवी शचीदेवियेनिसि मिगे सोगयिसुवळ् ॥ श्रीपति ना विष्णुः पृथुवीपति येने लक्ष्मीदेवनोगेदु वसुदेवोपमकत्तमविभुगं श्रीपालदेवियेम्ब मुतदेवकिगं ॥ प्रकटिततेजनन्वयसरोजसमूहविकासि(शि) सज्जनप्रकररथांग सम्मदकर (२) नियताभ्युदयप्रशोभिताधिकनिजमण्डकं जितकळंक पवित्रचरित्रनागि चन्द्रिकेगधिनाथनादनिदु विस्मयन्त प्रभुलक्ष्मीभूभुजं ॥ श्रीयुवतीशहेमगरुडध्वजमंडितमण्डलेश्वरनारायणलक्ष्मणंगे तनुजम्भुजदन्ते धरोरुभारधौरेयरनून दानजयधर्मधरविभुकार्तवीर्यलक्ष्मीयुतमल्लिकार्जुन महीश्वररादरतयंविक्रमर् ॥ परचक्र निजविक्रमक्कगिदु तेजःच ( जश्न ) क्रमं बिटु कोवर चक्रक्केणे याप्प नन्तिरेविनं दिक्चक्रम ब्यापिसुत्तिरे [यह लेख भी एक टुकड़ा है और उस पाषाण-तलसे लिया गया है जो मि० फ्लीटको उस मन्दिरके आँगनमें आधा गड़ा हुभा मिला था जिसमें कि पूर्वके दो लेख (नं. १३० और १६०) मिले थे। इसमें नमसे ले कर कार्तवीर्य द्वितीय तककी वंशावली मिलती है । का० द्वि० को चालुक्य राजा भुवनैकमलदेव या सोमेश्वर द्वितीय बतलाया गया है। इसका काल सर डब्ल्यू इलियट (Sir W. Elliot) ने शक ९९१ ? (१०६९७०६० ) से लेकर शक ९९८ ( १०७६-७ ई० ) तक बताया है । इसमें उसके पुत्र सेन द्वितीयका नाम भी आता है, लेकिन लेखकी वंशावलिके भागका मुख्य उद्देश्य स्पष्टतः ७ वी पंक्तिमें है जिसमें कार्तवीर्यकी सन्तान-परम्पराका उल्लेख है। यही कार्तवीर्य उस समय अपने कुटुम्बका प्रतिनिधि था, उसका पुत्र सेन नहीं, क्योंकि वह उस समय निरा बच्चा रहा होगा। दानगत लेखका भाग लुप्त है।] [JB, X, p. 172, a; p. 213--216, t.; p. 217-219, tr. (ins. n° 4)]
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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