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________________ जैन - शिलालेख संग्रह सुजन-जन-वनज-हंसन । सुजनजनं पोगले मल्लिनाथ नेगळ्दम् ॥ गुडिवयमं बिट्ट ( सिरेपर ) पट्टण खामिय परि नेम-ब तवेरे दन्दे तुरवनिन्तिदुगेय्यदयेत्तिद यसा सन्तोस (घ) -दानविनोद’............'।। श्री-पट्टण-सामिय गुरुगळ् श्रीमद्- दिवाकरणन्दि-सि द्धान्त-रत्नाकर-देवरु श्री बिरुद सर्वज्ञं बीर- सान्तर -देवम् ॥ पुसियदिरारोळंब- नदि पर - नारिय तपोगे तप्पू । एसगदिराव- जीवदेळवडेयेम्बुदनेन्तुमोल्लदिर् । कुसियदि यदि पोण तळतेडेयो व्रतमेन्दु कोण्डुदम् । बिसडदिरेम्बुदी - बरेद... सने सान्तर - वीर - देवनम् ॥ ग्रान्वय-पद्मिनी - दिनकरं श्री - शान्तरोशनु | २४०. .... -गुणाम्भोनिधि बीरुगं बिरुद सर्वज्ञं धरा-मण्डलम् । पोग [] कूर्मिमयिनीये निर्मळ यां धर्म्माधिकं तान्दिदम् । जगदोल पट्टण - सामि मनिदम् नोकं यशो-भागियो || पट्टण स्वामि- जिनालयद शासनम् [ जिनेन्द्र की प्रशंसा | जब, ( उन्हीं चालुक्य पदों सहित ), त्रैलोक्यमल देवका राज्य प्रवर्तमान था - जब, ( उन्हीं पदों सहित जिनसे अलङ्कृत नन्नि शान्तर शि० ले० नं० २१३ में हैं ), त्रैलोक्य मल्ल वीर - शान्तर -देव शान्तळिगे हज़ार पर एकछत्र राज्य कर रहा था; तत्पादपद्मोपजीवी ( उन्हीं पदों सहित जैसे कि पद शि० ले० नं० २११ में हैं ) । पट्टण-स्वामि नोक्कय्य-सेष्ट्टिको ( उक्तमितिको ) अपने बनवाये हुए पट्टण-स्वामि जिनालय के लिये वीर-शान्तर -देवको सोने के १०० गद्याण मेंट करने पर, मोलकेरेका दान मिला; इस गाँवकी सीमायें । इसने
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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