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________________ २२५ . नल्लूरका लेख कुम्मुखवाड (कल्भावीका ही पुराना नाम) गाँव में एक जिनेन्द्रका मन्दिर बनवाया और इसके लिये गाँव दानमें दे दिया। इस दानका काल शक संवत् २६१, विभव संवत्सर दिया हुआ है। लेकिन, जे० एफ० फ्लीटकी रायमें, यह काल जाली है और वास्तविक उल्लेख लेखके उत्तरार्ध में सन्निहित है (ॐ स्वस्तिसे लेकर ), जिससे मालूम होता है कि उपर्युक्त दान बीचमें या तो जब्त कर लिया गया था या असावधानीके कारण बन्द कर दिया गया था और उसे कचरस नामके किसी दूसरे गा महामण्डलेश्वरने फिरसे चाल, किया। भले ही तमाम लेख बनावटी हो, पर, जे. एफ. फ्लीटकी मान्यतानुसार, इसका उत्तरार्ध तो सच्चा है। मौलिक दानपत्रके खो जानेसे ही स्वयं लेखगत दानकी बनावटी तिथि देनी पड़ी है । लेखमें खाली 'अमोघवर्ष' ऐसा नाम देनेसे यह पता नहीं चलता कि 'ममोघवर्ष' नामके राष्ट्रकूट राजाभोंमेंसे कौन-सा अमोघवर्ष इस समय शासन कर रहा था। मौलिक दानका काल मैलाप अन्वय तथा कारेय गणके आचार्य गुणकीर्ति, नागचन्द्र, जिनचन्द्र, शुभकीर्ति और देवकीर्तिके वर्णनसे निकाला जा सकता है । प्रथम दान देनेके समयका काल शक सं० २६१ गलत है, क्योंकि विभव संवत्सर चालू शक सं० २३१ पड़ता है । ] [Ind. Ant., Vol. X VIHI, pp. 309-13.] नल्लूर-संस्कृत तथा कन्नड़ [विना काल-निर्देशका; लगभग १०५० ई० (लई राइस )] [नल्लूर (हत्तुगडुनाड्) में, तीतरमाडके घरके पास सर्वे (Surves) ११७ नं. के तालाबके बाँधपर एक पाषाणपर ] भद्रं भूयाजिनेन्द्राणां शासनायाघनाशिने । कु-तीर्थ-व्यान्त-संघात-प्रभिन्न-वन-भानवे ॥ खस्ति श्री प.."धनं परत्र-हित-कारणकं परमोपकारकर। कुडे त.."ताब्दि""य तिग"मतिग""भया""दन्तम । शि० १५
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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