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________________ २०८ जैन-शिलालेख-संग्रह विमलचन्द्र-पण्डितदेवने, संन्यास-विधिसे मरण कर, मुक्ति प्राप्त की। पण्डित पदके साथ बिमलचन्द्रमुनिकी प्रशंसा। विमलचन्द्र-पण्डित-देवकी गृहस्थ शिष्या हयुम्बेकी छोटी बहिन शान्तियग्वेने अपने गुरुके स्वर्गवासके उपलक्ष्यमें स्मारक खड़ा किया।] [EC, VI, Mudgere tl., n° 11] पञ्चपाण्डवमलै-तामिल [ काल लगभग ९९२ ई.) १ स्वस्ति २ [को] विराजराज [क] [सर] व न] मर्कु याण्डु ८ आ [व]दुपडुवू[ ]त्तुप्पेरुन्-तिमिरिनाटुतिरुप्प[]न्मलैप्पो___३ गमागिय कूरगनिप्]ाडि [इ] रैयिलि पाळ]लिञ्चन्दत्त की []-प्[प]ग[लां][इ लाडर[[]जर्गळ कर्पूर-विले को [ण्डु इ] द्धा में मङ्के ४ टुप्पोगिन् रडेन् रु उ]डैयार इला[ड] राजर् पु[ग] ब्धिएवर्-ग] ण्डन् मग[ना]र वीरशोळ तिरुप्पान् ] मलै देवरेत्तिरुव ५ (डित्तोल [देळुन् ]द[रु]ळि इ []उक्क इ[व]र देवियार् इलाडमह[]देवि[य]र कर्पूर-विलैयुमन्निया[य]वावदण्डविरै [यु] म []. ६ जिन्द[रुळ वेण्डुमेन्रु विष्णप्पजेय् [य उ]. या] [वी] र-शोळर् कर्पूर-विलैयुमन्निया[य] वावदण्ड विरै ७ युमो [v] f जोमेन्ररुञ्चेय्य [य] ऊर् किळ [बन्] | गि[य वी] र-शोळवि-लाड-प्पेर [२] * यानु/डैयार [क] मियेया
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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