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________________ PA जैन शिलालेखसंग्रह ये पालयन्ति मम धर्ममिमं समस्त तेषां मया विरचितोऽचलिरेष मूर्षि ॥ .. ... [पा शिलालेख धारवाड़ जिले के दक्षिण-पूर्व कोनेकी भोर मिरज रियासक्के लक्ष्मेश्वर तालुकेके प्रसिद्ध शहर लक्मेवारके शहवसति नामके मन्दिरमें पत्थरकी एक लम्बी शिलापर है। इसमें ८२ किया है। मक्षर पसी सताब्दिकी पुरानी कर्णाटक (कर) लिपिके हैं। इसमें तीन विमिशिलालेख समाविष्ट है। पहला भाग-१ से लेकर ५१ वी पंक्तितक गाथा कोहु वंशका शिलालेख है। इसमें उशिलित दान, ८९० शा वर्षके व्यतीत होनेपर और जब विमल संवत्सर प्रपतमान था, मारसिंहदेव-सत्यवाक्ष-कोजाणिवर्मा, के द्वारा जिन्हें गा-कन्दर्प भी कहते थे, जयदेव नामके एक जैन पुरोहित (पण्डित)को किया गया था। विमव संवत्सर शक ८९० ही था और भक ८९ शुद्ध संवत्सर था, इसलिये शिलालेखका समय ठीक दिया हुमा है। यह दाम पुलिगेरे (जिसका अर्थ होता है बीतेके तालाबका नगर) नगरकी कुछ भूमियोंका था। इस 'पुलिगेरे नगरको मिस्टर पलीउने लक्ष्मेश्वरका ही पुराना नाम माना है। पह दान एक जैनमन्दिरके लिये, जिसे इसमें 'गजकन्दर्प जिनेन्द्रमन्दिर' कहा गया है, किया गया था। इस मन्दिरको स्वयं मारसिंहदेवने बनवाया या उसका जीर्णोद्धार किया था। वंशावली इस तरह दी गई है: माधव-कोजाणिवर्मा (या माधव प्रथम) माधव द्वितीय इरिवर्मा .. मारसिंह मारसिंहदेव-सलवाक्य-कोजाणिवर्मा, या
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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