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________________ (चों के सामान्य आकार का सम्यक् ग्रहण संपन हैं । त्वरि स्वभाव वाली सत्तावान् वस्तु को यह नये स्वीकार करता * सत्ता से व्यतिरिक्त वस्तु परविषाण के समान परिवहन है। गां वस्तु के सामान्य अंशमात्र को ही ग्रहण करना इस नय की सीमा है । area विशेष रहित सामान्य मिध्यादृष्टि है पर यही संग्रहामास हैं । पुरुषाय, ज्ञानात, मन्दाद्वैत प्रादि प्रद्वैतवाद संग्रहामास के अन्तर्गत है । (3) महारत यह नय लोक प्रसिद्ध व्यवहार का agent होता है लेकिन वस्तु के उत्पाद-व्यय-प्रोव्यात्मक स्वभाव से अपरिचित होने के कार पह नय भी मिया-कृष्टि है । वस्तु के यमेवश्व का सर्वथा निराकरण करना चहा मास है । सभातिक, योगाचार, विज्ञानाद्वैत र माध्यमिक दर्शन व्यवहारात अन्तर्गत प्राते हैं । (4) सूत्रमय वस्तु की वर्तमान पर्याय से इस नब का सम्बन्ध है । उeer uatr और अनागत पर्याय से कोई सम्बन्ध नहीं । सामान्य विशेषात्मक वस्तु के मात्र विशेषांश का ही समाश्रयसे होने के कारण यह दृष्टि सम्यकू नहीं है क्षतिकवाद ऋजुसूत्राभास है । (5) शब्दमय - शब्द द्वारा ही लिंग, वचन साधत, उपग्रह-न काल के भेद वस्तु के भिल-भिन्न अर्थों को ग्रहण करना है। उदाहरणार्थ पुष, तारा व नक्षत्र में समान अर्थ होने पर भी लिंगभेक है । जब प्रपः वर्षा ऋतु में संख्याभेद है । 'एहि मन्ये रथेन यास्यसि' में वाचनाद है। तानि रमते, उपरमति में उपग्रहभेद है । अतः मदभेद से प्रथमेव-मानवा अन्यथा वैयाकर पाधारहीन हो जायेंगे | क्ि है। (6) समसिंग आदि से प्रभिन्न शब्दों में अनेक विषय Heer प्रवृत्तियो का द्योतन होना समभिनय हैं। जैसे इन्द्रः शऋः पुरन्दरः अथवा घटः, कुद, कुस्त्र में समान-सिम होने पर भी प्रवृत्ति निर्मित की अपेक्षा से वर्ष में मिलता है । शब्दनय में समान लिम्बी पाक में वेद नहीं तु समfies नय पर्यायार्थक शब्दो मे भी पर्थभेद स्वीकार करता है । उसी रूप में में प्रयुक्त हो (7) एवंभूत-दीप में हो उसे स्वीकार करना एवभूवनय है। जैसे युक्ती जब जलादि के बाहर तभी पटको घट कहना चाहिए, निर्व्यापार स्थिति में नहीं। इस प्रकार यह नय हीदी प्रवृत्ति स्वीकार करता है जबकि क्रिया हो पति की हदों को भी स्वीकार कर लेता है । प्रयुतिक्त सत्र के स्थान पर धम्म शब्द का प्रयोग एवं नयागा है। हो
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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