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________________ का संग्रह कर आकार को कुछ मौर भी बढ़ कर दिया ग्रंथ अधिक उपयोगी हो पाता । 63 कादि वह इनके अतिरिक्त डॉ. मोहनलाल मेहता मौर के प्रार. बत्रा के सम्पादन में श्रमण मासिक पत्रिका, बाराणसी के जनवरी 1976 के प्रांक से जैनागम पदानुक्रम कोश का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था जो काफी प्रश तक हो चुका है । इसी तरह युवाचार्य महाप्रज्ञ श्री मुनि नथमल जी के निर्देशन में कौन विश्व भारती लातू से मागम शब्द कोश का प्रथम भाग भी प्रकाशित हुआ है । यह बहुत सारी सूचनाओं से प्रापूर है। श्री श्री चन्द चोरड़िया का 'वर्धमान कोश' भी उल्लेखनीय है जिसमें उन्होंने वर्धमान महावीर के जीवन से सम्बद्ध उद्धरण एकत्रित किये हैं । तुलसीप्रज्ञा में भी डॉ. नथमल टांटिया ने जैन पारिभाषिक शब्द कोश का प्रकाशन प्रारम्भ किया है । इस प्रकार प्राधुनिक युग में अनेक जैन विद्वानों ने विविध प्रकार के कोश ग्रन्थों को तैयार किया, जो मध्येतानों के लिए अनेक प्रकार से उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। यहां हमने कतिपय कोशग्रंथों का ही उल्लेख किया है। इनके प्रतिरिक्त कुछ मौर भी छोटे-मोटे अनेक कोश ग्रन्थों की रचना जैन विद्वानों ने की होगी पर उनकी जानकारी हमे नही हो सकी। यहां विशेष रूप से ऐसे कोश ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है जिनका सम्बन्ध प्राकृत भोर जैन साहित्य से रहा है। संस्कृत हिन्दी, गुजराती, अग्रेजी भादि भाषाओं के जैन विद्वानों द्वारा लिखित कोश इस सीमा से बाहर रहे है । जैनग्रंथ सूचियों को भी हमने जानबूझकर छोड़ दिया है क्योंकि माधुनिक दृष्टि से वे कोशों की परिधि में नहीं भातीं। हों, यदि हम कोश का संकीर्ण प्रर्थं न लेकर उसका प्रयोग विस्तृत अर्थ में करें तो निस्संदेह कोशकार एवं कोमग्रन्थों की एक लम्बी सूची तैयार हो सकती है ।
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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