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________________ का मामला है, समता का रंग गोल मिना पाता है, अपनीतर की परिगरिया एक पोर में प्रश्न होता है. हमीमारी हो, बोपरी और से अन्न होता है तुम किसके पास होसार में होली के म मममम पिन को पनुनपस्न अग्नि में बसा है और पामतः पारी मोर जात हो पाती है। इसी शिवानन्द को प्राप्त करने के लिए काम मे प्रेरित किया है मायो सहब बसन्त, से सब होरी होरा। इत बुद्धि दबा किस बासड़ी, इस जिय रवन सचं मन पीरा।। मान भ्यान बफ वाल बबत है, मनहर शब्द होत धन बोरा ॥ परम सुराग गुलाल उड़त है, समता रंग दुई में घोरा ........ इसी प्रकार चेतन से समतारूप प्राणप्रिया के साथ "छिमा बसन्त" में होसी खेलने का मामह करते हैं। प्रेम के पानी में करुणा की केसर घोलकर मान ध्यान की पिचकारी से होली खेलते हैं। उस समय गुरु के वचन की मृबंग है, निश्चय व्यवहार नय ही ताल है, संयम ही इत्र है, विमल प्रत ही बोला है, भाव ही गुलाल है जिसे अपनी झोरी में भर लेते हैं, परम ही मिठाई है, सपही मेवा है, समरस से मानन्दित होकर दोनों होली खेलते हैं। ऐसे ही वेतन और समता की जोड़ी चिरकाल तक बनी रहे, यह भावना सुमति अपनी सखियों से अभिव्यक्त करती है चेतन खेलौ होरी ॥ सत्ता भूमि छिपा बसन्त में, समता-पान प्रिया संग गौरी।। मन को मार प्रेम को पानी, तामें करना केसर चोरी। माम ध्यान पिचकारी भरि मारि,माप में बार होरा होरी॥ गुरु के वचन मृदंग बजत है, नय दोनों अफ वाल कोरी।। संजय प्रवर विमल व्रत चौला भाव गुलाल भर भर भारी॥ परम मिठाईलपबामेवा, समरस मानन्द ममस कटोरी॥ बानत सुमति सह सखियन सो, चिरजीवो यह चुन चुप चोरी सन्तों ने परमात्मा के साथ भावनात्मक मिलन करने के लिए मासस्तिक विवाह किया, मेमनार भी हुए और उसके वियोग से सन्तप्त भीए । बनारसीबास ने भी परमात्मा की स्थिति में पहुंचाने के लिए माध्यामिक विवाह, मेन 2. हिन्दी मह, पृ. 121
SR No.010109
Book TitleJain Sanskrutik Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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